श्रद्धांजलि
“मेरा प्यारा बच्चा, छत पर क्यों गई थी? इतनी जल्दी क्या थी दुनिया छोड़ने की!” अनगिनत सवाल पकड़ बनाते हुए…
मीनू कहती जा रही थी और आंखों से पानी निरंतर बहते झरने की तरह अपनी रफ़्तार पकड़े हुआ था।
कभी गले से लगाती, कभी कंपकंपाते हाथों से उसकी आंखें बंद करती। परंतु आंखें बंद ही नहीं हो रहीं थीं। सपाट से खुली उसकी ओर देख रही थीं। मानों अभी उठ खड़ी हो भागने लगेगी ऐसा लग रहा था।
वह जानती थी कि न वो उठेगी, न भागेगी और न ही कोई क्रियाकलाप करेगी! फिर भी मीनू उसको अपनी बाहों में भर बस रोए जा रही थी आखिर वह उसकी इकलौती पालतू बिल्ली पिकाचू जो ठहरी!
— नूतन गर्ग