बीटिंग रिट्रीट समारोह से ” अबाइड विथ मी ” धुन हटाने का मामला
देश का 73 वा गणतंत्र दिवस सदैव पारम्परिक बदलाव के लिए याद भी किया जाएगा , चाहे अमर जवान ज्योति की लौ का स्थानांतरित होकर राष्ट्रीय समर स्मारक के मशाल में विलय किए जाने की बात हो , इंडिया गेट पर नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा स्थापना की बात हो , गणतंत्र दिवस उत्सव की गतिविधियों को 26 जनवरी से भी पहले यानि 23 जनवरी से शुरू करने की घोषणा हो या फिर बीटिंग रिट्रीट समारोह से पिछले 70 सालों से बज रहे धुन अबाइड विथ मी ” को हटाने का मामला ही क्यों न हो , केन्द्र सरकार ने जिस तरह से गणतंत्र दिवस की पारम्परिक गतिविधियों में बदलाव किया है , इसकी चर्चा व्यापक रूप से मीडिया और आमजन के बीच हो रही है , यही कारण है कि देश के अधिक्तर विपक्षी दल केन्द्र सरकार द्वारा किए गए इन बदलाओ का न सिर्फ विरोध कर रहे हैं अपितु यह भी आरोप लगा रहे हैं कि केन्द्र में सत्तारूढ़ वर्तमान भाजपा सरकार बीटिंग रिट्रीट से अबाइड विथ मी धुन को हटाकर महात्मा गांधी का अपमान कर रही है । ऐसे में वोटिंग रिट्रीट समारोह क्या है ? अबाइड विथ मी धुन का इतिहास क्या है ? इसे हटाए जाने पर या यूँ कहें कि बदलाव पर विवाद के क्या कारण हैं? बदलाव पर केन्द्र सरकार का क्या पक्ष है ? इन सभी सवालों का जबाब तलाशना आवश्यक है ।
पारम्परिक रूप से गणतंत्र दिवस उत्सव 26 जनवरी से शुरू होकर 29 जनवरी को समाप्त हो जाता है, बीटिंग रिट्रीट प्रतिवर्ष 29 जनवरी को विजय चौक पर आयोजित होता है , इस अवसर पर थल सेना , जल सेना और वायू सेना अपने पारम्परिक धुन के साथ मार्च करते हैं , इसके बाद बैंड मास्टर राष्ट्रपति के पास जाते हैं और बैंड वापिस ले जाने की अनुमति मांगते हैं, ठीक शाम 6 बजे राष्ट्रीय ध्वज को उतार लिया जाता है , वास्तव में यह गणतंत्र दिवस उत्सव के समापन की घोषणा होतो है ।
वीटिंग रिट्रीट समारोह प्रचीन काल के युद्ध की भी याद दिलाता है जब सेना सारा दिन युद्ध लड़ने का पश्चयात सूरज ढलने के बाद अपने -अपने कैम्प में आराम करने लौट जाती थी ।
बीटिंग रिट्रीट समारोह में पिछले 70 सालों से परम्परागत रूप से कई धुन बजाई जाती है, जिसमें ” अबाइड विथ भी” भी शामिल है , अगर अबाइड विथ भी धुन का इतिहास देखें तो स्काॅटलैंड के कवि हेनरी लाइट ने इसकी रचना की थी , वास्तव में आबाइड विथ मी इसाई धर्म का एक भजन है , हेनरी ने अपनी पहली रचना 1826 में लिखी थी , उनके लिखे तमाम भजनों में ” आबाइड विथ मी ” सबसे अधिक प्रसिद्ध हुआ , इसकी रचना उन्होंने 1847 में की थी , 1861 में हाइम एंशिएन्ट एण्ड मार्डन छपने के बाद संपादक विलियम माॅन्क ने इसकी धुन बनायी थी , जार्ज पंचम के पंसंदीदा घुनों में यह एक था और भारत में महात्मा गांधी का भी यह पसंदीदा धुन हुआ करता था , इसलिए 1950 से ही बिटिंग रिट्रीट समारोह में यह धुन बजाई जाती है ।
इस वर्ष केन्द्र सरकार के अनुसार बिटिंग रिट्रीट समारोह में ” अबाइड विथ भी धुन” नहीं बजेगी, जिसको लेकर विपक्षी दल सरकार की आलोचना कर रहें हैं , कांग्रेस ने केन्द्र सरकार द्वारा संस्कृति के साथ खिलवाड़ करने के साथ इसे महात्मा गांधी के अपमान से भी जोड़ दिया है , लेकिन सरकार का पक्ष यह है कि ऐसे समारोह में ” अबाइड विथ भी” धुन की अपेक्षा सेना और नागरिकों में ” ऐ मेरे वतन के लोगों ” की धुन अधिक देशभक्ति की भावना भरने में कारगर होगी , हालांकि यह बदलाव कोई पहली बार नहीं हुआ है , इससे पहले भी 2012 में शहनाई को बीटिंग रिट्रीट में शामिल किया गया था, 2014 में ” रघुपति राघव राजा राम ” और “जहाँ डाल -डाल पर सोने की चिड़िया ” गीतों का धुप बीटिंग रिट्रीट का हिस्सा था , 2001 में स्टार वार्स सिनेमा के थीम म्यूजिक को बीटिंग रिट्रीट का हिस्सा बनाया गया था , लेकिन इन सभी बदलाव पर गौर करें तो भले किसी धुन को बीटिंग रिट्रीट का हिस्सा बनाया गया हो लेकिन कभी भी अबाइड विथ मी के धुन को हटाया नहीं गया था , यह पहला मौका है जब ऐसा बदलाव हो रहा है , ऐसे में आलोचना होना लाजिमी है , लेकिन इस बदलाव को सकारात्मक दृष्टि से भी देखा जा सकता है क्योंकि भले ही आबाइड विथ मी हमेशा से बोटिंग रिट्रीट का हिस्सा रही हो , लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि भारतीय ” ऐ मेरे वतन के लोगों ” गीत से ज्यादा जुड़ाव महसूस करते हैं और जब बात देश के गणतंत्र दिवस के उत्सव की हो तो स्काॅटलैंड के कवि भले वो कितने भी महान हो उनकी रचना की अपेक्षा अगर अपने देश के महान कवि गीतकार प्रदीप की रचना” ऐ मेरे वतन के लोगों ” जिसे उन्होंने भारत -चीन युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के सम्मान में लिखा था की धुन बिटिंग रिट्रीट का हिस्सा बन रही है तो यह आलोचना की नहीं गर्व की बात है और कहीं अधिक प्रसांगिक है ।
अमित कुमार अम्बष्ट ” आमिली ”