बोल पड़ी वॉशिंग मशीन-कहानी
कहानी -बोल पड़ी वॉशिंग मशीन
सरला पिछले एक हफ़्ते से बहुत परेशान थी,
ख़ुशमिज़ाज सरला घरेलू कामों को मन लगाकर करती । सारे घर को सजाती-सँवारती । उसे केवल परिवार के जीते-जागते सदस्यों की ही नहीं बल्कि घर की हर एक बेजान दिखने वाली वस्तुओं में अपने स्पर्श से प्राण फूँकने की आदत सी हो गई थी ।
उसे पता ही न चला कितने वर्ष बीत गए उसके ब्याह को उसके बदन पर उम्र की बढ़ती सिलवटों को, उसके कमर और घुटने के दर्द को,कंधे के सर्वाइकल पर फिर भी सभी की मुस्कराहट में जीती थी सरला की कराहती मुस्कान ! क्योंकि उसके स्पर्श से सभी मानो सजीव से थे ।
एक दिन कड़ाके की सर्दी के मौसम की सर्द सुबह को अचानक सरला के दहेज की वॉशिंग मशीन नहीं चली ।
सरला ने अभी इस बारे में घर में किसी से कुछ नहीं कहा और सभी को समय पर नाश्ता दे रसोई निपटा जब सभी अपनी-अपनी दिशा को हो लिए तब सरला ने उठा लिए औज़ार हमेशा की तरह और सब स्क्रू खोल-खाल मशीन में भरा हुआ पानी बाहर निस्तार किया और अच्छे से पुर्ज़ों में तेल डाल सब पेंच कस दिए ।
एक उम्मीद के साथ सरला ने मशीन का स्विच लगा उसे ऑन किया, किंतु ये क्या मशीन तो चली ही नहीं और एकदम उसमें से धुँआ निकला कुछ जलने की बदबू महसूस होते ही सरला ने स्विच निकाल दिया ।
हाव-भाव से रुआंसी,अंतर्मन से दुखी आँखों में भरे अश्रु ज्यों अभी डबडबा जाएँगे
वह बाल्कनी में ही दीवार से सटकर बैठ जाती है ।
गीले कपड़ों के ढेर को देख उसे जितना दुःख न था उससे कहीं ज़्यादा इस बात का दुःख था कि मेरी मशीन जो मेरे साथ आई थी वो शायद अब कभी नहीं चलेगी ।
एकटक मशीन को निहारती सरला को अचानक एक स्वर सुनाई दिया -‘
‘सरला तुमने तो मेरी दिन-रात इतनी सेवा की है मैं तो ठाट से इतने सालों से चल और जीती आई सिर्फ़ तुम्हारी सेवा की वजह से ।
तुमने मुझे हमेशा एकदम साफ़-सुथरा रखा मुझे बीमार नहीं पड़ने दिया अगर थोड़ा-बहुत कभी मैं रुक गई तुमने मेरा तुरंत इलाज किया तभी तो इतने साल एकदम बढ़िया सेहत रही मेरी ।
मैं हूँ तो एक मशीन ही न, मेरे पुर्ज़े भी तो घिसते हैं न चलते-चलते इन कपड़ों का भार सहते-सहते ।’
एकदम सरला चौंक जाती है कि मेरी मशीन की भी आत्मा बोल रही है !!
‘कौन ??? -सरला ने कहा ।’
‘अरे सरला मुझे नहीं पहचाना,तुम्हारी दिनचर्या की साथी तुम्हारी वॉशिंग मशीन ।’
‘पर तुम बोल कैसे सकती हो ?’ तुम्हारे अंदर से तो धुँआ निकल चुका है !’- सरला ने आश्चर्य से कहा ।
‘ सरला आज मैं तुम्हें कुछ कहने आई हूँ ।
तुमने इतने साल मेरी सेवा की तभी मैं अच्छे से चल पाई पर मैं तो एक मशीन हूँ
एक दिन तो मेरे पुर्ज़े घिसने ही थे
पर मैंने तुम्हें देखा है, अपने सामने तुम्हारी तकलीफ़ों में ।तुमने तो कभी भी खुद की देखभाल नहीं की ज़रा खुद को भी तो देखो एक बार कि तुम्हें कितनी मरम्मत की ज़रूरत है !!’
अगर तुम्हें कुछ भी हो तो किसे दर्द होता है ये तुम आज तक न समझ पायी ! थोड़ा खुद के लिए संभल जाओ ।’
अचानक सरला की आँख फिर भर आती है, वह जागी आँखों से अपनी वॉशिंग मशीन को होले से स्पर्श करती है मानो कह रही हो कि तुमने तो बेजान होकर भी जानदार बात कह डाली ।
भावना अरोड़ा ‘मिलन’
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