लघुकथा

लघुकथा – ज़रूरत 

चौराहे पर भीड़ नहीं है आज। आसमान पर काले बादल छाए हैं- बारिश की भी संभावना है। गुमटा भी बैठा है वहाँ। लाॅकडाउन खुले तीन दिन हो गये, उसे काम नहीं मिल पाया। आज उसे उम्मीद है। उसने अपने एक साथी को फोन लगाया तो पता चला वह बीमार है। आज नहीं आयेगा।
” अरे, गुमटा। सुन । वो सेक्टर सात वाली साइट पर चला जा। ठेकेदार से मिल लिओ।”
तभी सामने से आती एक कार पास में रुकी।
” तू गुमटा है न! चलेगा एक रैम्प बनाना है!”
” कितना एरिया होगा?”
” यही 100-110 वर्ग फुट। लेबर ले ले एक।”
उसने एक लेबर से बात की और साथ लेकर तीनों साइट पर पहुँचे।
रैम्प बीच बीच में से काफी टूट फूट गया था।
” सारा तोड़कर दोबारा बनेगा। टाइल लगेंगी 1×1 फुट की।”
” दो दिन का काम है ठेकेदार।  आज तुड़वा देते हैं। कल ईंट कुटवा कर दुरमुट लगवा देंगे।क्रेशर बिछाकर टाइलें कल दोपहर बाद शुरू कर देंगे।”
” बोल क्या कहता है- कित्ते लेगा?” ठेकेदार ने पूछा।
” जो ठीक समझो। 110 वर्ग फुट  है, टेपर भी बनेगा, और सफेद सीमेंट भी । आठ हजार दे देना, लेबर अलग।”
लाॅकडाउन हट चुका था, पर लेबर अभी लौटी न थी।ठेकेदार मौसम को देख रहा था।
” नहीं, साहब। दो दिन लगेंगे पूरे। “
तभी बूँद पड़नी शुरू हो गई।  ठेकेदार ओट में हो गया।
” क्या कहते हो? तुड़वाऊँ!”
” ठहर, जरा मौसम देख लेते हैं।” ठेकेदार टाल मटोल के मूड में था।
” अपनी तो दिहाड़ी मर जायेगी!” लेबर बोला।
” अरे, रुक थोड़ी देर।” ठेकेदार ने कुछ  सख्त होना चाहा।
गुमटा चुपचाप देख रहा था ,और सोच रहा था।बूंद अभी पड़ रही थी।
” मैं तो जा रहा हूँ।” कहकर लेबर जाने को हुआ तो गुमटा ने कहा,” थोड़ी देर देख ले। वहां भी अब काम न मिलेगा। आधी पचीदी जो मिलेगी –” लेकिन  लेबर चला गया। गुमटा ने जेब से तम्बाकू की पुड़िया निकाली, हथेली पर रगड़ी, और चुटकी भर कर निचले होंठ में दबा ली। तभी उसका मोबाइल बज उठा।
” गुमटा! काम मिल गया क्या? ” उसके किसी साथी का फोन था।
” हाँ, साइट पर हूँ। अभी मौसम खराब है। इंतज़ार कर रहे हैं।”
” लेबर की ज़रूरत है तो मैं आऊँ?”
बारिश हल्की हो रही थी।ठेकेदार उनकी बात सुन रहा था। बोला-
” बुला ले। काम शुरु कर।”
गुमटा ने अपने साइट की समझा दी और वह रैम्प का माप लेने लगा।
— अशोक जैन

अशोक जैन

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