गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

पिछले कई दिनों से मैं वैसा नहीं रहा
खर्चे बढ़े तो दूसरा मुद्दा नहीं रहा

हो दाँत में या पाँव के घुटने में दर्द आज
या कल हृदय का रोग अचम्भा नहीं रहा

मधुमेह रक्तचाप सब काबू में हैं जरूर
कल भी रहेंगे मुझको भरोसा नहीं रहा

अध्यात्म का खिंचाव है तो काव्य से लगाव
दोनों तरफ झुकाव से सीधा नहीं रहा

घर में रहूँ तो छूटने लगती हैं महफिलें
बेकार घूमने का वो जज्बा नहीं रहा

संन्यास लेके इन दिनों रहता हूँ मौन ही
लहरों का भी स्वभाव नदी सा नहीं रहा

मैं ‘शान्त’ क्या करूँ मिलूँ किससे कहूँ मैं क्या
पहले की तरह आदमी उम्दा नहीं रहा

— देवकी नन्दन ‘शान्त’

देवकी नंदन 'शान्त'

अवकाश प्राप्त मुख्य अभियंता, बिजली बोर्ड, उत्तर प्रदेश. प्रकाशित कृतियाँ - तलाश (ग़ज़ल संग्रह), तलाश जारी है (ग़ज़ल संग्रह). निवासी- लखनऊ