डाल डाल पर टेसू फूले,
चलने लगी शीतल बयार।
दिन थोड़े गर्मीले हो आए,
सुनहरी शाम रही पुकार।
कानन ,बगिया मुस्काते हैं ,
कली फूल से हो गुलज़ार।
नीले,पीले,काले,सब रंग की
तितली उड़ती पंख पसार।
मदनोत्सव के आते ही
भंवरे करने लगते गुंजार।
आम फिर बौर से भर गए ,
कोयल कूक के रही पुकार।
खेतों ने पीली साड़ी है धारी ,
धरा करती पायल की झंकार।
मदनोत्सव का हुआ आगमन
आया बहार पर होकर सवार
— डॉ. अमृता शुक्ला