उड़ता पतंग खिलता जीवन।
बच्चों का मन सुंदर उपवन।।
दूर आसमान को छूता पतंग।
बढ़ती जैसे बच्चों की उमंग।।
लम्बी डोर पतंग का जोड़।
ऊंचाइयों का यही इक मोड़।।
पतंग का है मन भावक रंग।
खेलता बच्चों का प्यारा संग।।
खेल-खेल में कभी न हारते।
पतंग जैसा ही उड़ना चाहते।।
कभी नहीं ये पीछे मुड़ते।
हर राह पर ये आगे बढ़ते।।
पतंग बच्चों का है राही अपना।
सिखाता सदा ही ऊंचा उठना।।
उड़ते पतंग का सार समझना।
ऊंची सोच सदा बना के रखना।।
— शम्भु प्रसाद भट्ट ‘स्नेहिल’