बालकहानी : तनु की कुछ शर्तें
इस बार ओड़गाँव के गाँधीपारा के बच्चों को होली का बेसब्री से इंतजार था। सबने होली मनाने की बात अपने-अपने तरीके से सोच ली थी। कोई खूब रंग-गुलाल खेलने की, कोई पिचकारी चलाने की, कोई ढोल-नगाड़े बजाने व नाचने-गाने की। अपने-अपने माता-पिता से रंग-गुलाल व पिचकारी भी लिवा लिये थे। किसी की पिचकारी बोतलनुमा, किसी की पिचकारी चिड़िया जैसी, तो किसी का बिलकुल गन टाइप का। सब एकदम खुश थे। सबने कल सुबह से ही एक जगह इकट्ठे होकर रंग-गुलाल खेलने का मन बना लिया था। सभी होलिकादहन की रात की प्रतीक्षा करते हुए बतिया रहे थे।
दूसरे दिन होली आई। तनु अपनी मम्मी के साथ घर काम में व्यस्त थी। वैसे उसका होमवर्क हो गया था। आनलाइन क्लास भी अटैंड कर चुकी थी। कक्षा दसवीं की तनु अपनी पढ़ाई के प्रति बहुत सतर्क थी। इस कोरोनाकाल में पढा़ई का महत्व वह अच्छी तरह समझती थी, तभी तो वह अपनी आनलाइन क्लास कभी मिस नहीं करती। अगर घर में नेटवर्क प्राॅब्लम होती, तो वह खेत की ओर या खेलमैदान में नेट कवर करने चली जाती; और क्लास अटैंड करती थी। तनु की पढ़ाई के प्रति उसकी लगन देख उसके माता-पिता व शिक्षक खुश थे।
इस बार की होली में तनु का अपनी सहेलियों के साथ रंग-गुलाल खेलने व पिचकारी चलाने का बिल्कुल मन नहीं था। वह पिछले साल का होली-हुड़दंग नहीं भूली थी। उसने ठान लिया था कि आज वह घर से बाहर नहीं निकलेगी। दस-गयारह बजे तक वह किचन में अपनी मम्मी का हेल्प करती रही। फिर खाना खाया। रोटी और पकवान का भी मजा लिया। फिर ड्राइंग रूम में बिस्तर पर लेट कर पुस्तक पढ़ने लगी। पढ़ते-पढ़ते उसे झूप से नींद लग गयी। बस पंद्रह-बीस मिनट ही हुआ होगा कि उसकी सहेलियाँ रंग-गुलाल लिये हँसती-खिलखिलाती हुई आईं। नींद खुल गयी उसकी। कमरे में घुसते ही शिखा कहने लगी- “क्यों तनु, तू सोयी है…आज सोने का दिन है… अरी आज तो होली है… नहीं पता क्या ? चल उठ। बाहर चल ना। मजा आएगा।”
तनु चौंक गयी। बोली- “पहले तुम सब बैठो ना। वाह ! तुम सब तो बड़े खुश लग रहे हो। क्या बात है… क्या इस बार कुछ अलग ही ढंग से होली मना रहे हो ?”
“हाँ बिल्कुल ! तुम भी हमारे साथ चलोगी, तभी तो मजा आएगा तनु।” नीतू सोफे पर बैठते हुए बोली। मनु बोला- “तनु दीदी , देखो न…मेरी पिचकारी कितनी सुंदर है। यह एक चिड़िया लग रही है। इसे दबाते ही रंग वाला पानी इधर से पिच-पिच कर के निकलता है।”
“हाँ मनु ! बहुत अच्छी है तुम्हारी पिचकारी तो।” तनु ने मनु को अपने पास बिठा लिया।
“देखो न तनु दीदी…” मैंने अपने दोनों जेब में गुलाल रखा है; लाल और हरा दोनों। मैं तो आप पर जरूर लगाऊँगा दीदी।” ओमू ने हँसते हुए कहा।
“नहीं भाई, रुको…रुको…। तनु अपने दोनों हथेलियों से चेहरा ढकते हुए बोली।
“बच्चों की आवाज तनु की माँ ने सुन ली। वह एक बड़ी सी प्लेट में ठेठरी, खुरमी, पुड़ी, बड़ा, गुजिया ले आयी। बोली- “चलो पहले इन्हें खालो; फिर जाना खेलने बाहर। तुम लोग बहुत अच्छे हो। अच्छा किये हमारे घर आकर।” सबके सामने ही वह प्लेट टी-टेबल पर रख दी। फिर सभी बच्चों ने तनु की माँ के माथे पर गुलाल लगाया और पैर छुए। सबने हँस-हँसकर रोटियाँ खाईं। शिखा बोली- “चल ना तनु बाहर रंग-गुलाल खेलेंगे।” तनु चुपचाप बैठी ही थी।
“दीदी, चलो ना…।” बिट्टू बोला।
“नहीं… नहीं… बिट्टू, मेरा मन नहीं कर रहा है। मैं नहीं जाऊँगी।” तनु बिस्तर से उठकर बैठी।
“अरी वाह दीदी ! तुम नहीं जाओगी, तो कैसे बनेगा ? क्या इस बार होली को फीकी करनी है।” ओमू बोला।
“नहीं… नहीं… बाहर नहीं जाऊँगी तुम सब के साथ।” कमरे से तनु बाहर निकलने लगी। तभी शिखा ने उसका हाथ पकड़ लिया। बोली- “क्यूँ हमारे साथ रंग-गुलाल खेलना तुम्हें अच्छा नहीं लगेगा ? हम सब अच्छे नहीं हैं तनु ?”
सभी बच्चे तनु से बार-बार एक ही प्रश्न करने लगे कि आखिर हमारे साथ खेलने बाहर क्यों नहीं जाएगी। कुछ देर तक तनु चुप रही। बच्चे जिद करते रहे। फिर तनु बोली- “नीतू, खुशी, शिखा ! मैं जाऊँगी तुम सब के साथ बाहर।” तनु की बात सुनकर सब खुश हो गए। तनु ने आगे कहा- “पर मेरी कुछ शर्तें हैं।”
“क्या शर्तें हैं दीदी ?” ओमू और बिट्टू बोले।
“बाहर रंग-गुलाल खेलते व पिचकारी चलाते समय कोई किसी को अपशब्द नहीं बोलेगा।” तनु अपनी शर्तें रखने लगी- “किसी के ऊपर कोई सादा या गर्म पानी नहीं डालेगा ; और हम में से कोई भी किसी के चेहरे या शरीर पर कोयला, कीचड़, तेल, पेंट, ग्रीस आदि नहीं लगाएगा। बोलो अब, क्या तुम्हें मेरी शर्तें मंजूर है ?” सभी तनु की बातें कान लगाकर सुन रहे थे। सब के सब चुप थे। एक-दूसरे को देखने लगे। फिर शिखा बोली- “हाँ तनु, ठीक है। तुम सही कह रही हो। अब ऐसा कुछ नहीं होगा।”
” हाँ…हाँ….दीदी ! आप जैसा चाहोगी, वैसा ही होगा, पर चलो न बाहर।” बच्चों ने भी हाँ में हाँ मिलाया। अंत में तनु भी मान गयी। बच्चे खुशी से झूम उठे- “होली है भाई….होली है…।”
— टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला”