धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

शिवरात्रि पर भाँग चलन एवं भांग से जुडी विभिन्न जानकारियाँ 

शिवरात्रि पर भांग का सेवन और मंदिरों में भांग से श्रृंगार शास्त्रीय दॄष्टि से भले ही आधारहीन हो किन्तु भक्तों की शंकरजी के प्रति श्रद्धा की दॄष्टि अनुचित नहीं है। भांग का मूल शब्द संस्कृत का भृंग या भृंगी है। जिसका अर्थ होता है मादक पदार्थ. यहाँ शब्द प्राकृत में भंगा होकर हिंदी में भाँग बन गया. कैनाबिस इंडिका मादा पौधे से प्राप्त होने वाली पत्तियों को भांग,पुष्प को गांजा और रेजिन(दूध )को चरस कहते है. भांग की पैदावार नेपाल के तराई वाले क्षेत्रों में ज्यादा होती है। इसकी पत्तियां मादक होने से नशा लाने के लिए बादाम आदि के साथ पीसकर पिटे है। इनका उपयोग करने पर प्यास ज्यादा लगती है। भूख भी लगती है। इसके नशे से क्षण भरको स्फूर्ति आती है। व् मनुष्य दुःख दर्द कुछ समय तक भूल जाता है इसकी तासीर ठंडी होती है। इसलिए इसके सेवन का चलन गर्मियों में ज्यादा देखा जाता है। समुद्र मंथन के समय जहर भी निकला था. भगवान शंकरजी ने स्वीकार कर पि लिया था.जहर उनके कंठ में रहने से  उनका कंठ नीला हो गया और इसीकारण उन्हें नीलकंठेश्वर  भी कहा जाताहै। जहर श्री में गर्मी पैदा करता होगा इसीकारण शंकरजी ने ठंडक हेतु गले में सर्प लपेट रखा हैसर्प का शरीर ठंडा होता है। और भक्तों का उदेश्य(शिव लिंग )के गले को ठंडा रखने की श्रद्धा से भांग का लेपन श्रृंगार हेतु कर ठंडक पहुंचाने का रहा होगा।वैसे शिवलिंग पर भस्म का लेप भी किया जाता है। शिवलिंग पर भाँग के श्रृंगार को भक्तों ने प्रसादी स्वरुप खाना शुरू कर दिया होगा। तभी से शायद शवरात्रि पर भांग का चलन होने लगा होगा। यहाँ सब जानते है कि भगवान शंकरजी सर्वश्रेष्ठ महायोगी ही नहीं योगेश्वर है तथ भगवान शंकरजी ज़्यदातर बर्फीली पहाड़ियों में निवास करते थे. कैलाश पर्वत आज भी उनके नाम को चरितार्थ कर रहा है। यहाँ सच है कि भांग का सेवन शंकरजी नहीं करते थे। उनको ठंडक पहुंचाने की श्रद्धा ने भांग के श्रृंगार  को बढ़ावा दिया तथा भांग के शौकीनों ने शंकरजी की श्रद्धा की आड़ में भांग के सेवन की प्रथा  को जन्म दिया।लोक गीतों में शंकरजी के बारे में भांग से संबंध गीत जरूर मिलते है। यह काफी अर्वाचीन और भक्तों के द्धारा भांगसेवन को उचित बताने का प्रयास मात्र है।भगवान शंकरजी को भांग चढाने का अर्थ अशुभ व्यवसन रूप का त्याग करना भी  रहा होगा।खेर ,  देखा जाए तो नशा नशा होता है,नशे का सेवन नहीं करना  ही असली भक्ति होती है. भांग के संबंध में विभिन्न जानकारियाँ चलन में भी है।  एक जानकारी के मुताबिक भगवान शिव को भाँग अतिप्रिय है.हर शिव मंदिर में शिवलिंग पर भांग का लेप लगाया जाता हैं.जो शिवलिंग के क्षरण को रोकता हैं.भगवान शिव को केवल भांग ही नही पसंद अनेक वनस्पतियां उनकी प्रिय हैं और वो हर वनस्पति अपने आप मे अद्भुत ओर चौकाने वाली हैं.।भांग के नर पौधे के पत्तों को सुखाकर भांग तैयार की जाती है.भांग के मादा पौधों की रालीय पुष्प मंजरियों से गांजा तैयार किया जाता है.भांग की शाखाओं और पत्तों पर जमे राल के समान पदार्थ को चरस कहते हैं.।भांग की खेती प्राचीन समय से ही भारतवर्ष में की जाती रही है सकी खेती करने वाले को पुराने समय में #पणि’ कहते थे.अगर आपको कहें कि भांग के पौधे से कपड़े ,प्लास्टिक, कागज, बिल्डिंग मटेरियल,और बायोडीजल भी तैयार किए जाते हैं, तो कम लोग ही  विश्वास करेंगे?  पर यह सच है।..लगभग 8 हजार पूर्व चीनियों ने भांग से कपड़े बनाने की विधि को विकसित कर लिया था .वर्तमान में चीनियों ने इससे बने कपड़ों का उपयोग फैशन के लिए शुरू किया.यही नहीं, भांग के पौधों से जूते और जीन्स भी तैयार किए जाते हैं.करीब 2 हजार वर्ष पूर्व से इस पौधे का इस्तेमाल #कागज बनाने के लिए होता रहा है.इसका उत्पादन भले ही कम हो, लेकिन इस कागज की खासियत यह है कि रिन्यूबल होता है भांग के पौधे से बिल्डिंग मैटेरियल भी बनाए जाते हैं.नीदरलैन्ड और आयरलैन्ड में कम्पनियां इन पौधों से बिल्डिंग मैटेरियल जैसे फाइबर बोर्ड, प्रेस बोर्ड और हेम्पक्रीट जैसे प्रोडक्ट्स का उत्पादन करती हैं।इसके बीजों के अनेक उपयोग आज भी पहाड़ी लोग जानते है, वे इसके बीजों की चटनी बड़े चाव से खाते है.भांग इस पृथ्वी पर पाया जाने वाला एकमात्र ऐसा पादप है जो नयी मस्तिष्क कोशिकाओं के बनाने की प्रक्रिया आरंभ करने की क्षमता रखता है…
मंदरमंथानाज्जलनिधौ, पीयूषरूपा पूरा,
त्रैलोक्यई विजयप्रदेती विजया, श्री देवराज्ज्प्रिया,
लोकानां हितकाम्या क्षितितले, प्राप्ता नरैः कामदा,
सर्वातंक विनाश हर्षजननी, वै सेविता सर्वदा।
अथर्ववेद में जिन पांच पेड़-पौधों को सबसे पवित्र माना गया है उनमें भांग का पौधा भी शामिल है. इसके मुताबिक भांग की पत्तियों में देवता निवास करते हैं.अथर्ववेद इसे ‘प्रसन्नता देने वाले’ और ‘मुक्तिकारी’ वनस्पति का दर्जा देता है. आयुर्वेद के मुताबिक भांग का पौधा औषधीय गुणों से भरपूर है. सुश्रुत संहिता, जो छठवीं ईसा पूर्व रची गई, के मुताबिक पाचन क्रिया को दुरुस्त रखने और भूख बढ़ाने में भांग मददगार होती है. आयुर्वेद में इसका इस्तेमाल इतना आम है कि 1894 में गठित भारतीय भांग औषधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इसे ‘आयुर्वेदिक दवाओं में
भांग में इंफ्लैमेटरी तथा एनेलजेसिक केमिकल्स होते हैं.जिसके शरीर के दर्द में तुरंत आराम मिलता है.एक सीमित मात्रा में भांग का प्रयोग करने से मांसपेशियों का दर्द, आर्थराइटिस (गठिया) के दर्द में तुरंत राहत मिलती है.बहुत तेज बुखार होने पर थोड़ी सी भांग पीने से शरीर का तापमान सामान्य होकर फीवर उतर जाता है.सेक्सुअल प्रॉब्लम्स (जैसे प्राइवेट पार्ट में उत्तेजना न होने, यौन इच्छा कम होना आदि) होने पर भी आयुर्वेद में भांग का सेवन बताया जाता है.किसी भी तरह की चिंता, अवसाद तथा डिप्रेशन संबंधी बीमारियों को दूर करने के लिए भांग के सेवन रामबाण उपाय है.यदि किसी कारण से भूख लगना बंद हो गई हो तो सीमित मात्रा में भांग का सेवन काली मिर्च के साथ करने से भूख बढ़ जाती है.लगातार सिर में दर्द रहने पर भांग की पत्तियों के रस का अर्क बनाकर दो-तीन बूंद कान में डालने से सिरदर्द हमेशा के लिए चला जाता है.मानसिक संतुलन खोने पर भांग में हींग मिलाकर सेवन करवाई जाती है.भांग के नियमित सेवन से कैंसर से शरीर में हुए घाव भी जल्दी ठीक हो जाते हैं.।डायबिटीज के रोगियों, हार्ट पेशेंट्स, गर्भवती महिला, बच्चों तथा बुजुर्गों को भांग का सेवन नहीं करना चाहिए.उत्तराखंड के ऊधम सिंह नगर जिले में पंतनगर सीमैप के वैज्ञानिकों की टीम ने कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के इलाज का फॉर्मूला भांग में ढूंढ निकाला है. वैज्ञानिक भांग में पाए जाने वाले औषधीय तत्व टीएचसी-ए, सीबीडी व कैनाविनायड युक्त भांग की प्रजाति विकसित करने में जुटे हैं और उन्हें सफलता भी हाथ लगी है.यानि अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा तो जल्द ही भांग से निकलने वाले औषधीय तत्वों से कैंसर व अन्य गंभीर बीमारियों के लिए कारगर दवाइयां बन सकेंगी.भांग की खेती बिना शासन की अनुमति करना..क़ानूनी अपराध है।
— संजय वर्मा ‘दॄष्टि ‘

*संजय वर्मा 'दृष्टि'

पूरा नाम:- संजय वर्मा "दॄष्टि " 2-पिता का नाम:- श्री शांतीलालजी वर्मा 3-वर्तमान/स्थायी पता "-125 शहीद भगत सिंग मार्ग मनावर जिला -धार ( म प्र ) 454446 4-फोन नं/वाटस एप नं/ई मेल:- 07294 233656 /9893070756 /[email protected] 5-शिक्षा/जन्म तिथि- आय टी आय / 2-5-1962 (उज्जैन ) 6-व्यवसाय:- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) 7-प्रकाशन विवरण .प्रकाशन - देश -विदेश की विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में रचनाएँ व् समाचार पत्रों में निरंतर रचनाओं और पत्र का प्रकाशन ,प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक " खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के 65 रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान-2015 /अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित -संस्थाओं से सम्बद्धता ):-शब्दप्रवाह उज्जैन ,यशधारा - धार, लघूकथा संस्था जबलपुर में उप संपादक -काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ :-शगुन काव्य मंच