शैक्षिक संस्थानों में ड्रेस यूनिफॉर्म का उल्लंघन गलत
बीते कुछ दिनों से कर्नाटक में मजहबी परिधान को पहन कर कुछ लड़कियाँ शैक्षिक संस्थानों में आने का प्रयास कर रही हैं जो शैक्षिक संस्थानों के ड्रेस यूनिफॉर्म का उल्लंघन है। कर्नाटक में हिजाब विवाद को लेकर जबरदस्त हंगामा जारी है। दिनभर कॉलेजों में दोनों ही पक्षों के स्टूडेंट इसको लेकर प्रदर्शन करते रहे। इसके बाद राज्य सरकार ने अगले तीन दिन के लिए स्कूल-कॉलेज बंद करने का निर्देश दिया है।
इस कारण कर्नाटक में शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब बैन पर जारी विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है। जबकि दुनिया के कई अन्य देशों ने भी हिजाब, बुर्का पर प्रतिबंध लगाया है जैसे, फ्रांस, चाइना, डेनमार्क, बेल्जियम, नीदरलैंड कैमरून, इटली सहित तमाम देशों में भी यह प्रतिबंधित है। राज्य सरकार ने ऐसे कपड़े पहनने पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया है जो स्कूलों और कॉलेजों में कथित तौर पर समानता, अखंडता और लोक व्यवस्था को बिगाड़ते हैं। सरकार ने कर्नाटक शिक्षा कानून, 1983 के क्लॉज 133 (2) को लागू कर दिया है। यह धारा एक ड्रेस यूनिफॉर्म को अनिवार्य करती है। सरकार के आदेश में कहा गया है कि प्राइवेट स्कूल प्रशासन अपनी पसंद का ड्रेस चुन सकते हैं। अब यहां यह प्रश्न उठता है कि शिक्षण संस्थान में हिजाब पहनना कहाँ तक उचित है जबकी आदेश में कहा गया है कि छात्र-छात्राओं को कॉलेज विकास समिति या प्रशासनिक बोर्ड की अपील कमेटी की ओर से तय की गई ड्रेस ही पहननी होगी। सरकार के आदेश के मुताबिक प्रशासनिक समिति द्वारा पोशाक का चयन नहीं करने की स्थिति में समानता, अखंडता और कानून व्यवस्था को भंग करने वाले कपड़े नहीं पहनने चाहिए। इस लिए यह समझना चाहिए कि देश संविधान से चलता है शरीयत से नही। सभ्य समाज में संस्कार निर्माण करने के लिए परिधान का अपना एक अलग महत्व होता है। परिधान समाज, संस्कृति, भूगोल, जलवायु आदि को दृष्टि में रखकर पहने जाते हैं और इस कारण भारतवर्ष में हम देखते हैं कि अलग-अलग स्थान पर लोग भिन्न -भिन्न प्रकार के वस्त्र धारण करते हैं क्योंकि भारतवर्ष के हर प्रदेश की भिन्न-भिन्न जलवायु है। अतः वस्त्र धारण करना देश, काल, परिस्थितियों पर निर्भर होता है। इस लिये यदि हम हिजाब, बुर्का कि बात करते हैं तो यह परिधान खाड़ी देशों का है जहां महिलाएं अपने पूरे शरीर को ढके रहती हैं कारण यह है कि खाड़ी देशों की जलवायु अलग प्रकार की है जबकि भारत की जलवायु हिजाब , बुर्का के अनुकूल नहीं है। दूसरे यदि समाजिक रूप में इस बात को कहें तो ध्यान में आएगा कि खाड़ी देशों में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर यह पहनावा पहना जाता है क्योंकि वहां जब यह परिधान चलन में आया था उस समय वहाँ घोर अशिक्षा थी इस लिये महिलाएं अपने को असुरक्षित महसूस करती थीं इस कारण उनको हिजाब, बुर्का पहनने के लिए मजबूर होना पड़ा। जबकी भारतवर्ष में इस प्रकार की कोई समस्या नही है। मुसलमानों ने हिजाब, बुर्का को मजहबी परिधान मान कर पहनना प्रारम्भ कर दिया। अब यदि हम शैक्षिक संस्थानों या अन्य संस्थानों की बात करें तो संस्थान अपने अनुसार ड्रेस तय करते हैं जिसे पहनना चाहिए। क्योंकि एक जैसा पहनाव पहनने से संस्थान में एकरूपता बनती है, समानता निर्माण होती है, भेदभाव का भाव खत्म होता है।
अब जो कर्नाटक में पहनाव को लेकर विवाद चल रहा है उसे समझना होगा। यह विवाद कई कारणों से हो सकता है जिसका प्रथम व प्रमुख कारण है कि राजनीतिक पार्टियों का दखल, दूसरा कारण है कि मजहबी भाव कट्टरपंथी मानसिकता, तीसरा कारण है भारत के प्रति वैमनस्यता का भाव। इन तीनों कारणों से यह विवाद चर्चा में बना हुआ है जिसके परिणाम स्वरूप उपद्रव, मारपीट, ऊंच -नीच जैसी स्थिति उत्पन्न हो रही है। यहां ये कहना है कि शिक्षण संस्थाओं ने जो वेश निर्धारित किया है उसको पहनना अनिवार्य होना चाहिए। इसी में सबकी मर्यादा है। मुस्लिम समुदाय के लोगों को आगे आकर यह कहना चाहिए कि हमको कट्टरपंथी स्वभाव को छोड़ सद्भाव के राह पर आगे आएं। अतैव हम सभी को यह प्रयास करना चाहिए कि इस मुद्दे को राजनीति से दूर रखना चाहिये। सभी को मानना चाहिए कि हम स्वतंत्र है लेकिन स्वच्छंद नही।भारतीय संविधान का पालन करें, कट्टरपंथी स्वभाव को छोड़कर सद्भावना के मार्ग पर चलें तभी समाज व राष्ट्र की उन्नति होगी।
इस कारण कर्नाटक में शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब बैन पर जारी विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है। जबकि दुनिया के कई अन्य देशों ने भी हिजाब, बुर्का पर प्रतिबंध लगाया है जैसे, फ्रांस, चाइना, डेनमार्क, बेल्जियम, नीदरलैंड कैमरून, इटली सहित तमाम देशों में भी यह प्रतिबंधित है। राज्य सरकार ने ऐसे कपड़े पहनने पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया है जो स्कूलों और कॉलेजों में कथित तौर पर समानता, अखंडता और लोक व्यवस्था को बिगाड़ते हैं। सरकार ने कर्नाटक शिक्षा कानून, 1983 के क्लॉज 133 (2) को लागू कर दिया है। यह धारा एक ड्रेस यूनिफॉर्म को अनिवार्य करती है। सरकार के आदेश में कहा गया है कि प्राइवेट स्कूल प्रशासन अपनी पसंद का ड्रेस चुन सकते हैं। अब यहां यह प्रश्न उठता है कि शिक्षण संस्थान में हिजाब पहनना कहाँ तक उचित है जबकी आदेश में कहा गया है कि छात्र-छात्राओं को कॉलेज विकास समिति या प्रशासनिक बोर्ड की अपील कमेटी की ओर से तय की गई ड्रेस ही पहननी होगी। सरकार के आदेश के मुताबिक प्रशासनिक समिति द्वारा पोशाक का चयन नहीं करने की स्थिति में समानता, अखंडता और कानून व्यवस्था को भंग करने वाले कपड़े नहीं पहनने चाहिए। इस लिए यह समझना चाहिए कि देश संविधान से चलता है शरीयत से नही। सभ्य समाज में संस्कार निर्माण करने के लिए परिधान का अपना एक अलग महत्व होता है। परिधान समाज, संस्कृति, भूगोल, जलवायु आदि को दृष्टि में रखकर पहने जाते हैं और इस कारण भारतवर्ष में हम देखते हैं कि अलग-अलग स्थान पर लोग भिन्न -भिन्न प्रकार के वस्त्र धारण करते हैं क्योंकि भारतवर्ष के हर प्रदेश की भिन्न-भिन्न जलवायु है। अतः वस्त्र धारण करना देश, काल, परिस्थितियों पर निर्भर होता है। इस लिये यदि हम हिजाब, बुर्का कि बात करते हैं तो यह परिधान खाड़ी देशों का है जहां महिलाएं अपने पूरे शरीर को ढके रहती हैं कारण यह है कि खाड़ी देशों की जलवायु अलग प्रकार की है जबकि भारत की जलवायु हिजाब , बुर्का के अनुकूल नहीं है। दूसरे यदि समाजिक रूप में इस बात को कहें तो ध्यान में आएगा कि खाड़ी देशों में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर यह पहनावा पहना जाता है क्योंकि वहां जब यह परिधान चलन में आया था उस समय वहाँ घोर अशिक्षा थी इस लिये महिलाएं अपने को असुरक्षित महसूस करती थीं इस कारण उनको हिजाब, बुर्का पहनने के लिए मजबूर होना पड़ा। जबकी भारतवर्ष में इस प्रकार की कोई समस्या नही है। मुसलमानों ने हिजाब, बुर्का को मजहबी परिधान मान कर पहनना प्रारम्भ कर दिया। अब यदि हम शैक्षिक संस्थानों या अन्य संस्थानों की बात करें तो संस्थान अपने अनुसार ड्रेस तय करते हैं जिसे पहनना चाहिए। क्योंकि एक जैसा पहनाव पहनने से संस्थान में एकरूपता बनती है, समानता निर्माण होती है, भेदभाव का भाव खत्म होता है।
अब जो कर्नाटक में पहनाव को लेकर विवाद चल रहा है उसे समझना होगा। यह विवाद कई कारणों से हो सकता है जिसका प्रथम व प्रमुख कारण है कि राजनीतिक पार्टियों का दखल, दूसरा कारण है कि मजहबी भाव कट्टरपंथी मानसिकता, तीसरा कारण है भारत के प्रति वैमनस्यता का भाव। इन तीनों कारणों से यह विवाद चर्चा में बना हुआ है जिसके परिणाम स्वरूप उपद्रव, मारपीट, ऊंच -नीच जैसी स्थिति उत्पन्न हो रही है। यहां ये कहना है कि शिक्षण संस्थाओं ने जो वेश निर्धारित किया है उसको पहनना अनिवार्य होना चाहिए। इसी में सबकी मर्यादा है। मुस्लिम समुदाय के लोगों को आगे आकर यह कहना चाहिए कि हमको कट्टरपंथी स्वभाव को छोड़ सद्भाव के राह पर आगे आएं। अतैव हम सभी को यह प्रयास करना चाहिए कि इस मुद्दे को राजनीति से दूर रखना चाहिये। सभी को मानना चाहिए कि हम स्वतंत्र है लेकिन स्वच्छंद नही।भारतीय संविधान का पालन करें, कट्टरपंथी स्वभाव को छोड़कर सद्भावना के मार्ग पर चलें तभी समाज व राष्ट्र की उन्नति होगी।