हुआ है वासंती मधुमास
पधारे हो तुम जब से प्रेम!
हुआ है वासंती मधुमास।
चढ़े कण-कण में अद्भुत रंग,
विहँसते हर प्राणी के अंग।
यही यौवन का अभिनव रूप,
मधुरमय होता सदा अनूप।
रचाये सृष्टि अनोखा रास।
पधारे हो तुम जब से प्रेम!
हुआ है वासंती••••••••।।
छुपाकर रोम-रोम में लाज,
चहकता स्वागत में ऋतुराज।
महकता है आँगन घर द्वार,
पुलक उठता जीवन संसार।
मुदित हो करता हास-विलास-
पधारे हो तुम जब से प्रेम!
हुआ हैै वासंती••••••••••।।
झूमते पल्लव बौर रसाल,
चूमते भ्रमर पुष्प के गाल।
सुनाती कोकिल हिय की बात
हुए हैं रम्य सुखद दिन-रात।
मिले मन ‘अधर’ परस्पर पास।
पधारे हो तुम जब से प्रेम!
हुआ है वासंती•••••••••।।
शुभा शुक्ला मिश्रा ‘अधर’