लघुकथा

निर्णय 

आज फिर दिव्या अपने पति दीपांशु पर बरस पड़ी थी | शादी को आठ साल हो गए मेरे सहेलियों की दो-दो बच्चे हो  गए और तो और मुझसे छोटी लड़कियों की शादी  हुए अभी ढाई तीन साल हो रही है और वह माँ बन गई है | जब भी अपने मायके जाती हूँ सब का एक ही सवाल बाल बच्चे कितने हैं .. बताओ क्या जवाब दूँ..?  आपसे कितनी बार कहा किसी अच्छे डॉक्टर से चेकअप करा लेते हैं, आपकी कमियों की सजा मुझे भुगतनी पड़ रही है …..सुन लो जी, ऐसा ही रहा तो तलाक ले लूँगी | दिव्या की बातें दीपांशु को अंदर तक हिला कर रख दी | वह खिड़की से बाहर गरीब अनाथ बच्चों को पानी की खाली बोतलें बिनते देख रहा था  आँखें अपने आप नम हो  गई थी |
किस तरह बेरोजगारी ने दीपांशु और स्नेहा को अलग कर दी लेकिन स्नेहा को कोई एतराज नहीं था | दोनों ने शादी से पहले निश्चय कर लिया था कि शादी के बाद अनाथ बच्चे गोद लेंगे लेकिन उसने अपने घर वालों को अपने प्यार के बारे में बता नहीं पाई और किसी और से शादी हो गई | दीपांशु कभी शादी करना नहीं चाहते थे लेकिन बूढ़े माँ बाप के लिए दिव्या से शादी  करनी पड़ी |
दिव्या को  समझाने की कोशिश किया मगर समझी नहीं | वह कुर्सी से उठा और दिव्या के पास जाकर बोला -“दिव्या एक नारी का दर्द समझ सकता हूँ,  सभी नारी माँ बनने का सुख चाहती हैं लेकिन इस दुनिया में ऐसे भी बच्चे हैं जिनका कोई नहीं है | मैं चाहता हूँ उनको माँ-बाप मिल जाए और हमें अपना बच्चा अगर आपको मेरे बातों से आज भी ऐतराज है तो यह रहा तलाक की कागज और निर्णय भी…|
— भानुप्रताप कुंजाम ‘अंशु’