लेखनी जो न्याय करे, न कोई अन्याय करे।
निरपराधी हाय करे, न हो ऐसी लेखनी।
कटू नही लिख पाती,बस गुणगान गाती
धन स्वार्थ से कमाती, न हो ऐसी लेखनी।
सच की न राह चले, दलालों की चाह चले।
निज धर्म बाह चले, नहो ऐसी लेखनी
जिसमे न आस दीखे, कुछ न प्रकाश दीखे।
प्रेरणा उदास दीखे, नहो ऐसी लेखनी।।१।।
लेखनी मे धार न हो, अधर्मी पर वार न हो।
व्यंग दिल के पार न हो, न हो ऐसी लेखनी।
सारवान जो लिखे ना, लिखे जेसा जो दिखे ना।
सच्चाई पर जो टिके ना, नहो येसी लेखनी।
शोषित वंचितों से दूर,देखती हो घूर घूर।
अमीरों से लेती भूर, ना हो ऐसी लेखनी।
जिसकी पहचान न हो, निज स्वाभिमान न हो।
देश मे सम्मान न हो, न हो ऐसी लेखनी।।२।।
रिपु दल आवाज करे, तना हर साज करे।
उसी वक्त गाज करे ऐसी ही हो लेखनी।
युवा छोडे़ भटकाव, लेखनी वो खेले दाव।
धरती पर रहे पाव। हो हमारी लेखनी।
गांव बना रहे गांव,वृक्षो की रहे छाव।
निर्मल करे भाव, हो हमारी लेखनी।
दुखिया का काज करे,भारती पर नाज करे।
दिलों ऊपर राज करे ,हो हमारी लेखनी।।३।।
— देवकी दर्पण