लघुकथा

अपराध भाव

आकाश और अभिषेक दोनों सहकर्मी थे। दोनों परम मित्र थे। लेकिन अभिषेक दिल का सच्चा और स्पष्टवक्ता था। एक दिन ऑफिस से घर लौटते समय अभिषेक ने आकाश से पूछा:-“तुम्हारे माता-पिता की क्या ख़बर है? सब कुशल-मंगल तो है?”
आकाश:-“गांव के पुश्तैनी घर में रहते हैं। अब तो दोनों की उम्र अस्सी की हो चुकी है। पिछले साल दीपावली की छुट्टियों में मिलने गया था।”
अभिषेक:-“बड़े ताज़्जुब की बात है!”
आकाश:-“इसमें ताज़्जुब की क्या बात है? दोनों बहरे हो चुके हैं।वे फोन पर बातचीत नहीं कर पाते।इसलिए कभी-कभी उनके पड़ोसी को फोन करके ख़बर पूछ लेता हूं।”
अभिषेक:-“बस इतना करने से माता-पिता के प्रति तुम्हारा कर्तव्य पूरा हो जाता है? आकाश,तुम कितने स्वार्थी और निष्ठुर बन चुके हो! कभी सोचा है कि तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हें काबिल बनाने के लिए कितना बलिदान दिया है?”
आकाश:-“इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी में समय ही नहीं मिलता।”
अभिषेक:-“तुमने जो आलीशान बंगला बनाया है वो किस काम का?क्या बंगले के एक कोने में भी तुम्हारे माता-पिता के लिए कोई जगह नहीं है?”
आकाश:-(कोई जवाब नहीं)
अभिषेक:-“चुप क्यों हो? जवाब दो आकाश।”
आकाश:-(कोई जवाब नहीं)
अभिषेक:-“आकाश,माना कि साल में एक बार दीपावली की छुट्टियों में शिष्टाचारवश तुम अपने माता-पिता से मिलने जाते हो। लेकिन क्या कभी सोचा है कि अब जीवन में उनसे प्रत्यक्ष मुलाकात कितनी बार होने वाली है? मान लो,उनकी उम्र अस्सी साल की हो चुकी है और उनकी आयु पचासी साल की है और साल में एक बार दीपावली की छुट्टियों में तुम उनसे मिलने जाते हो,तो अब उनसे प्रत्यक्ष मुलाकात सिर्फ़ पांच बार होने वाली हैं। यह चिंतन का विषय है। संतान की माता-पिता को कुछ भी देने की हैसियत नहीं है। संतान उनके ऋण को कभी चुका नहीं पाती। संतान माता-पिता को दे सकती हैं तो-सिर्फ समय। अपने माता-पिता के साथ जितना भी हो सके उतना समय बिता लो। एक दिन कच्ची मिट्टी की गगरी की तरह सबको टूट जाना है। हमें भी।श्मसान में जब चिता पर उनका मृत शरीर जलकर ख़ाक हो जाएगा और जब तुम घर वापस आओगे तब बहुत पछतावा होगा।इसका कोई प्रायश्चित नहीं किया जा सकता। सोचो आकाश, दिल से सोचो।”
आकाश का सिर शर्म से झुक गया।अपराध भाव के साथ उसकी आंखों से अश्रु की धारा बहने लगी।

— समीर उपाध्याय

समीर उपाध्याय

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