कविता

खीर की कटोरी

गौर वर्णा
देख
थी
अपर्णा
मन ,कुछ चंचल हुआ।
भवन में
अकेले सहधर्मिणी
मन हर्षित हुआ।
संकेत से
प्रिया ने
किया इशारा
द्विगुणित उत्साह से
दोनों .हाथों से
उठा लिया।
होठों से लगाकर
दिल खोलकर
जिह्वा से
पान किया।
जब हो गया तृप्त
प्रिया ने कहा
लो
एक और गौर वर्णा
धन्य धन्य
खीर की कटोरी
गौर वर्णा।
-अशर्फी लाल मिश्र

अशर्फी लाल मिश्र

शिक्षाविद,कवि ,लेखक एवं ब्लॉगर