जब जब वो मेरे घर आए।
जब जब वो मेरे घर आए।
खुशियों ने फिर पर फैलाए।
नीलगगन ने भी सुर साधे,
आंगन वंदन वारे बांधे,
मौसम भी चंदन महकाए।
जब जब वो मेरे घर आए।
मन खुशियों का झूला झूले,
हम भी अपनी सुध-बुध भूले,
मन का पंछी सरगम गाए।
जब जब वो मेरे घर आए।
बादल भी फिर नृत्य दिखाते,
मौसम को भी साथ नचाते,
मन ही मन घरभी मुस्कराए।
जब जब वो मेरे घर आए।
खुशियों के आँसू आँखों में,
फूल खिले देखे शाखों में,
सूखा मन सरिता हो जाए।
जब जब वो मेरे घर आए।
सदियों से उनसे रिश्ता है,
यादों में पल पल बसता है,
मन मंदिर पुलकित हो जाए।
जब जब वो मेरे घर आए।
— बृंदावन राय सरल