कहानी

भाई बहन

रेवा घर मे घुसते हुए बोले जा रही थी, “यहां बाबूजी हुक्का लेकर बैठते थे, यहां अम्मा की खटिया रहती थी, ये कोठरी में अनाज की बोरियां रहती थी।”
सुमन अपनी मम्मी को आश्चर्य से देख रही थी और राजीव की बेटी वर्षा अकेली बाहर मिली, वो भी चुपचाप देख रही थी, ये कौन मेहमान है, जो घर मे घुसे जा रहे हैं।
रेवा ने पूछा, “बेटी, बाबा कहां है, उनकी तबियत ठीक नही, मुझे पता चला। मैं तुम्हारी बुआ दादी हूँ,बेटी, कई वर्षों बाद आना हुआ।”
“दादी, बाबा, उस कमरे में सो रहे, मम्मी, पापा मामा के यहां गए हैं।”
रेवा जल्दी भाग कर अपने शिवा भाई साहब के सिरहाने गयी, सो रहे थे, धीरे से उनका सिर सहलाया।
अचानक आंखे खोली और चिल्लाए, “कौन है ?”
वर्षा ने बोला, “दादी, बाबा को कुछ दिखता नही, अपना नाम बताइये।”
“तभी आवाज़ आयी, रे…….वा, तुम, अब भाई की याद आयी, मेरी सांसे दो वर्ष से तुम्हे पुकार रही हैं, जब भी ईश्वर से मन का नेटवर्क मिलता है, आवाज़ आती है, तुम्हारी इकलौती बहन भी मन ही मन तुमसे जुड़ी है, इंतेज़ार कर लो, और मैं बचपन की रेशम की डोर से बिस्तर पर बंध गया हूँ। तुम्हे एक बार देख भी नही सकता, हां, छू सकता हूँ, उन हाथों को जिसने मेरी कलाई में हमेशा राखी बांधी थी।”
रेवा ने हिचकियाँ लेते हुए भाई साहब के हाथ मे एक रेशमी राखी रक्खी, “बताइये ये क्या है?”
“आज रक्षा बंधन है, सुमन थाली सजाकर लाओ, तीन दशक बाद आज मैं अपने भैया को राखी बांधूंगी।”
अब शिवा भाई साहब की कलाई पर राखी, मुंह में काजू की बर्फी और भाई बहन की आंखों में अथाह प्रेम की नदी अपनी रफ्तार पर थी।
अब वर्षा के मम्मी पापा का पदार्पण हुआ, घर का त्योहारी माहौल देखकर प्रसन्न हुए। राजीव बोले, “बुआ, आपकी कहानी अम्मा बाबू जी से सुनकर ही बड़े हुए, मैं दो साल का था, तब आपकी शादी हुई, फिर मैंने आपको नही देखा।”
“हां, बेटे , क्या करूँ, तुम्हारे फूफाजी को गुस्सा बहुत आता है, शादी में चाचा से कोई मनमुटाव हुआ, और उसके छींटे  मुझ पर कई वर्षों तक पड़े।”
शादी के बाद नारियां कई बार हालात के आगे घुटने टेक देती हैं, भला हो 21वी सदी के बच्चो का जो रुख मोड़ना जानते हैं ।
— भगवती सक्सेना गौड़

*भगवती सक्सेना गौड़

बैंगलोर