चुनाव
लोकतांत्रिक व्यवस्था में
जन प्रतिनिधियों को
सिर्फ चुनने का ही नहीं,
उन्हें वापस बुलाने का भी
अधिकार हो जनता को.
झूठे आश्वासन की जाल में
अब नहीं फंसती है जनता,
मतदाताओं की चुप्पी में
जनता को बेवकूफ बनाने वाले
फंसते हैं …..नेता
भूख, गरीबी और उपेक्षा का
दंश झेलते मतदाता,
मतदान के दिन
उम्मीदवारों के लिए
बन जाते हैं भाग्य-विधाता.
विगत पांच वर्षों में
जन-प्रतिनिधियों द्वारा
किए गए कार्यों का ही
मूल्यांकन होता है-
चुनाव परिणाम.
चुनाव में
न जनता जीतती है
न उम्मीदवार जीतता है
बल्कि जीत होती है
– स्वस्थ लोकतंत्र की.
— विनोद प्रसाद