भोले भंडारी
कैसी अदभुत छॅंटा निराली!
नंदी पर करते असवारी !!
गले लपेटे विषधर भारी!
कहलाते हैं वो त्रिपुरारी !!
जो भी दिल से तुझे पुकारे !
भव सागर से उसे उबारे !!
मन कामना जो पूर्ण करें !
जय जय प्रभु महादेव हरे !!
दीन दुःखी हम सब जन तेरे !
कब से द्वार खड़े हैं तेरे !
सुंदरता चहुँ ओर भरे है !!
जय शिवशंकर हरे हरे है !!
सबके ह्रदय में बसते हो !
सारे जग के दुःख हरते हो !!
अद्भुत शोभा प्रभु निहारूं!
दिल से तुझको प्रभु पुकारूँ!
मेरी संकट को दूर करें !!
जय जय प्रभु वैद्यनाथ हरे !!
— मणि बेन द्विवेदी