सपने करती साकार
तू नदियां के धार सी,
कलकल करती जाती है।
बिना किसी से आस लगाए,
निरन्तर चलती जाती है।।
हिरणी सी कुलांचे मारती,
घर आंगन बुहारती है।
भोर से निशा तक,
सबके सपने बुनती है।।
अपने सपने भीतर,
रखती है संजोकर,
इसी उम्मीद के साथ।
दायित्वों का निर्वाह कर,
करूंगी सपने पूरे अपने अपने आप।।
नेत्रो मे उमंग,
हदय मे तरंग।
प्यारी मुस्कान संग,
निभाती सब फर्ज।।
घात प्रतिघात सहती,
आर्थिक मार भी सहती।
तनिक उफ़ ना करती,
सब संतुलित कर लेती।।
विद्ता का पर्याय बन,
सही गलत का बोध कराती।
परिवार की ढाल बन,
खुशियों की गंगा बहाती।।
पूरे करती सबके अरमान,
हो जाए सपना साकार।
ना रहे कोई दुखी,
हो जाए सब सुखी।।
देकर मजबूत आधार,
संवारती घर – द्वार।
सब्र धीरज धैर्य की बन मिसाल,
अपने भी सपने करती साकार।।
— प्रियंका त्रिपाठी ‘पांडेय’