खेतड़ी के महाराजा अजीत सिंह
<span;>स्वामी विवेकानंद के अभिन्न सहयोगी थे खेतड़ी के महाराजा अजीत सिंह
<span;>शिकागो के धर्म सम्मेलन में हिंदुत्व का डंका बजाने वाले स्वामी विवेकानंद का संबंध झुंझुनूं के खेतड़ी कस्बे से आत्मीय पूर्ण रहा था।नरेन्द्रनाथ को विवेकानंद का नाम देने का श्रेय खेतड़ी को ही हैं।अप्रैल 1891 में महाराजा अजीत सिंह ने माउंट आबू में स्वामी विवेकानंद से भेंट की थी।महाराजा विद्वान व्यक्ति थे,उनके व्यक्तित्व एवं ज्ञान से प्रभावित होकर अगस्त 1891 में स्वामी विवेकानंद खेतड़ी पधारे थे।पत्रकारिता के भीष्म पितामह पंडित झाबरमल्ल शर्मा की पुस्तक खेतड़ी के इतिहास में लिखा है कि-प्रसिद्ध लोकसेवक संस्था श्री रामकृष्ण मिशन के कार्य का आरम्भ सर्वप्रथम खेतड़ी से ही हुआ था।स्वामी जी के साथ महाराजा अजीत सिंह की घण्टों तक धर्म विषयों में चर्चा होती थी।स्वामी विवेकानंद महाराजा के इतने बड़े प्रशंसक थे की उन्होंने कहा था-यदि राजाजी मुझे न मिले होते तो भारतवर्ष की उन्नति के लिए मैं जो थोड़ा काम कर सका हूँ, वह भी नहीं कर पाता।महाराजा अजीत सिंह ने स्वामी विवेकानंद जी से कानून एवं पदार्थ विज्ञान का अध्ययन किया था।
<span;>महाराजा अजीत सिंह बहादुर का जन्म 16 अक्टूबर 1861 को अलसीसर में हुआ था।उनके पिता ठाकुर छतु सिंह शेखावत थे।अजीत सिंह जी खेतड़ी के महाराजा फ़तेह सिंह के दत्तक पुत्र के रूप में 15 दिसम्बर 1870 को खेतड़ी की राजगद्दी पर बैठे।जयपुर सवाई रामसिंह ने महाराजा अजीत सिंह की शिक्षा का प्रबंध किया था,उन्हें जयपुर के नोबल्स स्कूल में भर्ती कराया था।उनका विवाह आऊवा के ठाकुर देवी सिंह चांपावत की पुत्री के साथ हुआ था।महाराजा अजीत सिंह ने राज्य में कई सार्वजनिक कार्य करवाए थे।उन्होंने सितम्बर 1891 में अजित सागर बांध का निर्माण करवाया था, जिसमे 86 हजार रुपये खर्च हुए थे।इसके अतिरिक्त उन्होंने अजीतसमन्द, बन्ध रेखा और बन्ध बेरी भी बनवाये।महाराजा की पुत्री सूर्यकुमारी थी,जिनका विवाह शाहपुरा नरेश उम्मेद सिंह के साथ हुआ था।1896 में महाराजा अजीत सिंह अपने जामाता के साथ विक्टोरिया जुबली के अवसर पर विलायत गये।वहां उन्होंने बिस्मार्क और मैक्समूलर जैसे शख्सियतों से मुलाक़ात की थी।1899 के भयंकर अकाल में महाराजा ने प्रजाकल्याण के लिए राज्य के अधिकांश करों को माफ किया था।18 जनवरी 1801 में महाराजा अजीत सिंह की मृत्यु सिकन्दरा की मीनार से गिर जाने से हो गयी थी।तत्पश्चात उनके पुत्र जय सिंह खेतड़ी के महाराजा बने।
<span;>महाराजा अजीत सिंह प्रजा हितैषी, विद्यानुरागी और कवियों का आदर करने वाले शासक थे।उन्होंने दरबारी कवि बलदेव बारहठ को लाख पसाव का सम्मान दिया था।