पूर्णता
तुम मुझमें अधूरे ही रहना
हमेशा, पूर्णतया पा लेना बिछोह
का कारण भी बनता है, जानती
हूँ मैं…
अधूरेपन की कसक में कहीं
न कहीं पूरेपन का एहसास
भी तो होता है न प्रिय….
तुमको सुनना, तुमको रटना
तुममें बहना, तुमसे जीना
बस यही लगन है अब मुझे..
पर हाँ आस नहीं छोड़़ूँगी मैं…
बैठी रहूँगी अपने अंत समय
तक ये खाली अँजुरी लिए कि
शायद तुम्हारे हृदय का वो पट
जो बंद है अभी..
खुले कभी और मैं भर
पाऊँ उसे प्रेमामृत से…
और जी सकूँ कुछ और दिन
कुछ और लम्हें.. सिर्फ तुम्हारे लिए
तुम्हारी होकर..पूरी होने
की ललक पूर्ति नहीं पूजा है मेरी
मैं पूजा करती हूँ तुम्हारी…।
— निधि भार्गव मानवी