भक्त प्रहलाद
हिरण्यकश्यपु दानव राज,
अत्याचारी दुर्जन।
नारायण से रखता बैर,
खुद को कहता ईश्वर।।१।।
आततायी के आतंक से,
भयभीत रहती प्रजा।
विष्णु की पूजा ना कर,
हिरण्यकश्यपु की करती पूजा।।२।।
अहंकारी के अत्याचार से,
हाहाकार मचा धरा पर।
नर-नारी-मुकुल का,
जीना हुआ दुष्कर।।३।।
हिरण्यकश्यपु कयाधु से,
जन्मा एक पुत्र-रत्न।
नाम रखा प्रहलाद,
था वह विष्णु-भक्त।।४।।
ॐ भगवते वासुदेवाय नमः,
ॐ भगवते वासुदेवाय नमः।
का करता हर-पल जाप,
अनन्य भक्त प्रहलाद।।५।।
हरि का करता तप,
देख दुष्ट हुआ रूष्ट।
पुत्र को पर्वत से,
गिराने का दिया आदेश।।६।।
तुंग शैल से गिरकर भी,
प्रहलाद गया बच।
होलिका चुनर ओढ़कर,
गई बैठ हवनकुंड,प्रहलाद संग।।७।।
बाल भी बांका ना हुआ,
भक्त की भक्ति थी प्रबल।
हुई होलिका जलकर भस्म,
भक्त था हरि-भक्ति में मगन।।८।।
अहंकारी का अहंकार,
अब था चरम पर।
दर्पी बोला प्रहलाद से,
कहां है तेरा ईश्वर।।९।।
बता इस स्तम्भ मे,
क्या है तेरा भगवान?
पापी ने जोर से मारा घूंसा,
चूर-चूर हुआ खम्भा।।१०।।
सुन सिंह सा गर्जन,
धरती डोली अंबर डोला।
डोला ब्रह्मांड सकल,
प्रभु नरसिंह हुए प्रकट।।११।।
हिरण्यकश्यपु बोला विष्णु,
मैं हूं अजर – अमर।
ब्रह्मा से मिला है वर,
नही कर सकता कोई मेरा वध।।१२।।
ना घर के अंदर ना बाहर,
ना मनुष्य ना जानवर।
ना अस्त्र से ना शस्त्र से,
ना दिन मे ना रात में,
ना धरा पर ना नभ मे।।१३।।
बोले भगवन!
ना मै घर के अंदर हूं ना बाहर,
मैं हूं चौखट पर।
ना मै मनुष्य हूं ना जानवर,
मैं हूं नरसिंह।
ना दिन है ना रात,
है सांझ।
ना धरा है ना नभ,
है मेरा अंक।
ना अस्त्र है ना शस्त्र ,
अपने नख से करूंगा तेरा वध।।१४।।
नख से अधर्मी का,
दिया उदर चीर।
बह गई रक्त धार,
निकले राक्षस के प्राण।।१५।।
कर रहे पुष्प वर्षा,
ऋषि मुनी देवगण।
वन्दन कर रहा,
ब्रह्मांड सकल।।१६।।
हिरण्यकश्यपु का वध कर,
दिया वासुदेव ने सन्देश।
ईश्वर सर्वश्रेष्ठ है,
ईश्वर से ना कोई श्रैष्ठ।।१७।।
चलो सन्मार्ग पर,
करो नेक काज।
सत्य धर्म की रक्षा कर,
करो प्रभु-हदय मे वास।।१८।।
प्रियंका पांडेय त्रिपाठी