धँसी आँखें,पिचके पेटों को ,फिर सुनाया भाषण।
काठ के खिलौनों ने पढा,रटा रटाया भाषण।
रात हुई बारिश,टपकता रहा टूटा छप्पर,
रात भर हम ने भी ओढा और बिछाया भाषण,
गरीबी वरीबी कुछ भी नही,जेहनी बीमारी है,
साहिबे निजाम ने कडवी दवा सा पिलाया भाषण
कोई फिरका ,कोई तबका, वो फर्क नही करते,
हुई हैं तरक्की,हरेक के हिस्से में आया भाषण।
हम रियाया,वो मालिक,नाटक के किरदार हैं,
हम ने सहा सुना,जो उन्होंने सुनाया भाषण।
— ओमप्रकाश बिन्जवे “राजसागर”