गीत
उर की पीड़ा, नीर प्रलय सी, धैर्य एक छोटी सी नाव ।
संघर्षों का राही जीवन, आखिर कब लेगा ठहराव ?
कर्तव्यों के बोझ शीश पर ।
शूल समेटे पाँव, लहू तर ।
जीवन सिर्फ गीत पीड़ा का,
घाव घाव जिसका हर अक्षर।
तब तब महँगा मोल चुकाया, जब चाहा कोई बदलाव ।
उर की पीड़ा नीर…………………………..
अश्कों से आचमन किया है ।
हर बाधा को नमन किया है ।
बासंती उपवन को तजकर,
कंटक पथ का चयन किया है।
ताप भरे शहरों की खातिर, छोड़ा अपना शीतल गाँव ।
उर की पीड़ा नीर……………………….
जग जीजिविषा की इक ज्वाला ।
आतुर है हर जलने वाला ।
पूजा गया वही दुनिया मे ,
जिसने पिया जहर का प्याला।
जग में काँटो से भी रक्खो, तुम फूलों जैसा बरताव ।
उर की पीड़ा नीर……………………
—————© डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी ‘गंजरहा’