गीत
रंग-अबीर-गुलाल लगाकर,सबको गले लगायें!
मन के सकल विकार मिटाकर,होली-पर्व मनायें!
जो मानवता के भक्षक हैं, हिंसक उन्हें बतायें!
झूठे लोगों के सब झूठे चोलें नोच बहायें !
बचे धर्म प्रह्लाद ,होलिका ऐसी चलो जलायें !
मन के सकल विकार…………….
कोशिश करो न कोई खेले कहीं रक्त की होली!
बचे लाज, ललनाओं की न लगे हाट में बोली ।
राम कृष्ण हम बनें, बेटियों को रणशक्ति बनायें!
मन के सकल विकार………………
मन का कल्मष बहे चलो हम वो पिचकारी मारें !
सुप्त हृदय भी हो उल्लासित ,धमहर द्वारे द्वारे ।
भेदभाव से करें किनारा,दूरी चलो मिटायें !
मन के सकल………………………..
विश्वपटल पर शांतिचित्र ,यूँ चलो उकेरा जाये!
रंग कभी मानवता का बदरंग न होने पाये ।
भारत बने विश्वगुरु, जग पे ऐसा रंग चढ़ायें !
मन के सकल ……………………….
© डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी