धरती कहे पुकार के
आओ मिल कर वृक्ष लगायें।
आंचल धरती का लहरायें।
खुशियों से धरती महकेगी।
ताप धरा का स्वतः हरेगी।
आकुल व्याकुल सकल धरा है।
ताप धरा का बहुत बढ़ा है।
छिद्र हुआ ओजोन में जब से।
कण कण धरा जला है तब से।
हे मानव तुम पछताओगे।
वायु बिना कब रह पाओगे।
वृक्ष सभी हरियाली देते।
औषधि दे खुशहाली देते।
वृक्षों से बारिश होती है।
प्राण वायु इनसे मिलती है।
वृक्ष सभी के हुये सहारे।
वृक्षों को अब मत संहारे।
पेड़ सभी को जीवन देते।
बदले में कुछ भी ना लेते।
प्रभु का है वरदान अनोखा।
वृक्ष कभी देते ना धोखा।
— मणि बेन द्विवेदी