कविता

धरती कहे पुकार के

आओ  मिल  कर  वृक्ष लगायें।
आंचल   धरती   का   लहरायें।
खुशियों   से  धरती   महकेगी।
ताप   धरा   का   स्वतः हरेगी।
आकुल व्याकुल सकल धरा है।
ताप  धरा  का   बहुत  बढ़ा  है।
छिद्र  हुआ ओजोन में  जब से।
कण  कण धरा जला है तब से।
हे   मानव  तुम   पछताओगे।
वायु  बिना  कब रह  पाओगे।
वृक्ष      सभी  हरियाली  देते।
औषधि   दे   खुशहाली  देते।
वृक्षों   से   बारिश   होती    है।
प्राण  वायु  इनसे   मिलती  है।
वृक्ष   सभी   के   हुये   सहारे।
वृक्षों   को  अब   मत   संहारे।
पेड़  सभी  को   जीवन    देते।
बदले  में  कुछ  भी   ना   लेते।
प्रभु  का   है  वरदान  अनोखा।
वृक्ष   कभी   देते   ना    धोखा।
— मणि बेन द्विवेदी

मणि बेन द्विवेदी

सम्पादक साहित्यिक पत्रिका ''नये पल्लव'' एक सफल गृहणी, अवध विश्व विद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर एवं संगीत विशारद, बिहार की मूल निवासी। एक गृहणी की जिम्मेदारियों से सफलता पूर्वक निबटने के बाद एक वर्ष पूर्व अपनी काब्य यात्रा शुरू की । अपने जीवन के एहसास और अनुभूतियों को कागज़ पर सरल शब्दों में उतारना एवं गीतों की रचना, अपने सरल और विनम्र मूल स्वभाव से प्रभावित। ई मेल- [email protected]