मायका
माँ तो सबकी प्यारी ही होती है, पर निर्मल को अपनी मां, दुनिया की सबसे खूबसूरत , होशियार और प्यार की मूरत लगती थी। माँ के साथ लाड़ प्यार के दिन का कोटा पूरा करके ससुराल आ गयी थी, वो भी अब उस रूप को अपनी आत्मा में सहेजकर बेटियों पर लुटाने लगी थी।
फिर भी मायके की आस रहती ही थी, शायद किसी को मेरी याद आ जाये। वर्तमान युग मे क्या प्यार, ममता का कोई महत्व है, पर एकाएक उसके मन के भावों ने उसको झिड़क दिया, “क्या सोच रही हो, कोई याद करे या न करे, माँ जरूर करेगी।”
तभी मोबाइल गुनगुनाया, “अपने तो अपने होते हैं।” देखा तो फ़ोन प्यारी सी मम्मी का था, “अरे, तुम मुझे कैसे भूल गयी, मेरी निर्मल, सुबह से हिचकी आ रही थी, तुम्हारे सिवा अब कौन है, जो मुझे याद करेगा।”
“तबियत कैसी रहती है, मम्मी, बिल्कुल सही पहचाना, आज मेरे अंदर तूफान घुमड़ रहा था, कैसे अपने शरीर के ही एक हिस्से को दूर भेजा जा सकता है, आज मैं भी रंजना को होस्टल भेजने की तैयारी कर रही थी, तभी विचारों ने मुझे याद दिलाया, इसको एक दिन ससुराल भी भेजना पड़ेगा। और आपकी मनोदशा का आज पूरी तरह अवलोकन किया। मन का दर्द आंखों से बहने लगा।”
मां की लरजती सी आवाज़ सुनाई दी, “एक बार आ जाओ, तबियत बहुत खराब लगती है, मुश्किल से दो चार कदम चल पाती हूँ। तुम्हारे भैया, भाभी आफिस में रहते हैं, पूरे दिन बचपन से आजतक का तुम्हारा चेहरा आंखों में रहता है। पता नही कब ईश्वर को मेरी याद में हिचकी आ जाये, और मुझे जाना पड़े।”
“मम्मी, चिंता न करो, अगले सप्ताह पहुँचती हूँ।”
और तीन दिन बाद ही भैया का फ़ोन था, निर्मल, मम्मी को कल रात अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा, ब्लड प्रेशर बहुत बढ़ गया था। और दौड़ भाग करके वो पहुँच गयी।
पहुँचते ही मम्मी के गले लगी, वो भी लिपट कर रो पड़ी और धीरे से बोली, “अब इजाजत दो निर्मल, मुझे लंबी यात्रा पर जाना है।”
“अरे क्या बोल रही हो, मम्मी, मैं आ गयी हूँ, अब आपको भला चंगा करके घर ले जाऊंगी।”
और सुबह पांच बजे ही अस्पताल से खबर आई, मम्मी यात्रा पर निकल चुकी। घर के आंगन में बेटी उसकी मृतदेह के पास बैठी हाथ से रेत की तरह सरकते मायके के आभास और माँ की मौत दो दुखों को एक साथ झेलती सुबक रही है।
घर पर दिन भर रिश्तेदार भरे थे और निर्मल की आँखों मे आंसू, उसे आगाह कर रहे थे, नजर भर देख ले, माँ को भी और माँ से बना मायका को भी, पता नही फिर आना हो पाए या नही।
— भगवती सक्सेना गौड़