जागो भारत वीर
तज दो अवगुण
मिटा दो कलेश
मत जाओ दनुजता के निकट
रम जाओ मनुजता में…
काम, क्रोध, लोभादि में न फंसो
दिव्य गुणों को करो धारण
जीवन सफल बनाओ
चुस्ती, फुर्ती, उत्कट क्रियाशीलता अपनाओ ।
प्रदूषण इतना फैला कि धरा ऊब रही
जग में त्राहिमाम-त्राहिमाम की स्थिति बन आई
जग-जीवन में घोर निराशा छाई
प्रकृति रक्षक बन धरा बचाओ।
स्वार्थ सिद्धि में संसार पगलाया
मानवता खतरे में,
पुनः विश्व युद्ध की करी तैयारी
होगा विनाश, महाविनाश !
भारत विश्व गुरु बन राह दिखाओ
धरा को स्वर्ग बनाओ
संसार निहारे तुम्हारी ओर
जागो भारत वीर ! अब तुम्हें ही करनी है सुहानी भोर…
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा