कविता

जलियांवाला बाग हूं

मैं जलियांवाला बाग हूं,
डायर की कायरता का साक्षी हूं।
क्या हुआ था जलियांवाला बाग मे?
आज फिर याद दिलाने आया हूं।।
भारत के,पंजाब प्रान्त के अमृतसर मे,
स्वर्ण मंदिर के निकट,जलियांवाला बाग मे।
तेरह अप्रैल उन्नीस सौ उन्नीस,बैसाखी का दिन,
सभा चल रही थी ,रोलट एक्ट के विरोध मे।।
आजादी का आंदोलन कुचलने को,
रोलट एक्ट कानून बनाया सरकार ने।
और अधिक अधिकार दे दिए ,
ब्रिटिश सरकार को बिल मे।।
बिना मुकदमा बिना वारंट के,
भारतीयो को बंद करते जेल मे।
पूरा भारत खड़ा हुआ इसके खिलाफ,
छेड़ दिया आन्दोलन जलियांवाला बाग मे।।
डायर नब्बे सैनिको संग,
पहुंच गया बाग में।
बिना चेतावनी निहत्थो पर,
सैनिक गोलियां चलाने लगे।।
दस मिनट एक हजार छ सौ पचास,
राउंड गोलियां दागी सैनिकों ने।
भागने का कोई रास्ता नही था,
मासूम जान बचाने कूद पड़े कूंए में।।
हजारो बच्चे बूढ़े नाबालिग,
छ सप्ताह का बच्चा मारे गए।
लहू लुहान हो गई थी धरती,
निरपराध मासूमो के खून से।।
भारतीयो का खून उबलने लगा,
डायर के इस जघन्य अपराध से।
ऊधम सिंह ने डायर की हत्या कर दी,
1940 लंदन के कैकंसटन हाल में।।
वीर शहीदो के सम्मान मे,
आज भी सीना ताने खड़ा हूं।
हां मैं जलियांवाला बाग हूं,
डायर की कायरता का साक्षी हूं।।
— प्रियंका त्रिपाठी ‘पांडेय’

प्रियंका त्रिपाठी

BSc(Maths),DCA,MCA,BEd शाह उर्फ पीपल गाँव IIIT Jhalwa प्रयागराज उत्तरप्रदेश