लघुकथा

ऑल द बेस्ट

एक ही रिक्त पद पर नियुक्ति हेतु अंतिम चरण के साक्षात्कार में मात्र दो अभ्यर्थियों को बुलाया गया। हाॅल में शुभम आवश्यक प्रमाण पत्रों की फाइल लेकर प्रतीक्षा कर रहा था। साक्षात्कार शुरू होने में कुछ समय ही शेष था। तभी हांफते हुए तेेेजी से दूसरे अभ्यर्थी ने हाॅल में प्रवेश किया। संबंधित अधिकारी को अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए उसने गिड़गिड़ा कर कहा- “सर, मेरी माँ बहुत बीमार है। उन्हें अस्पताल में एडमिट कराने में देर हो गई।”
कागजी कार्यवाही के बाद वह शुभम के पास ही बैठकर उससे बातें करने लगा। उसकी गरीबी और परेशानियों को सुनकर शुभम द्रवित हो गया।
साक्षात्कार के लिए पहले शुभम को बुलाया गया। बोर्ड के सदस्यों को बहुत आश्चर्य हुआ जब शुभम ने कुछ आसान सवालों के गलत जवाब दिए। साक्षात्कार के बाद शुभम को बाहर इंतजार करने के लिए कहा गया। फिर दूसरे अभ्यर्थी का साक्षात्कार हुआ।
लगभग दस मिनट बाद शुभम को बोर्ड के सदस्यों ने फिर बुलवाया और पूछा- “मि० शुभम, लगता है आपने जानबूझ कर कुछ सरल सवालों के गलत जवाब दिए हैं। आपने ऐसा क्यों किया? क्या आपको नौकरी की आवश्यकता नहीं?
शुभम ने कहा- “सर, नौकरी की तो मुझे सख्त जरूरत है। पर मेरे दूसरे साथी को शायद मुझसे ज्यादा जरूरत है।”
“ठीक है, आप बाहर प्रतीक्षा कीजिए।”
शुभम ने बाहर आकर दूसरे अभ्यर्थी को सांत्वना दी। थोड़ी देर बाद ही कंपनी के प्रबंधक ने दोनों को अपने कक्ष में बुलवाया और कहा- “वर्तमान में कंपनी को इस पद पर दो लोगों की आवश्यकता है। आप दोनों इस पद के लिए अपेक्षित योग्यता रखते हैं। इसलिए आप दोनों को नियुक्त किया जाता है। आशा है, आप दोनों ईमानदारी और निष्ठापूर्वक अपनी जिम्मेवारियों का निर्वहन करेंगे। ऑल द बेस्ट!”

— विनोद प्रसाद

विनोद प्रसाद

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