गीतिका
एकलव्य के अपराधी तुम द्रोण तुम्हारा क्या होगा ?
वहम तुम्हारा टूटेगा यह ,कि सब कुछ अच्छा होगा ।
तुम भविष्य से खेल रहे हो, काट रहे हो हाथों को ,
जिन आँखो को रुला रहे हो, उनमें भी सपना होगा।
जाने कौन पिपासा है तुम चीरहरण पर मौन रहे ?
कल इतिहास वही लिक्खेगा,जो इस पल जैसा होगा।
दुर्योधन के खेमें मे तुम ,कब तक जीवित रह लोगे ?
ध्रष्टद्युम्न है घात लगाये ,तुमको भी मरना होगा ।
एकलव्य का अंगभंग कर ,जीत गये हो ,मत सोचो !
घाव लिये माथे पर कल को ,वंश तेरा पैदा होगा ।
————————–© डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी