गीतिका
यक्षप्रश्न चहुँओर खड़े हैं, मेरे पास जवाब नही है ।
नागफनी के काँटे है बस ,मेरे पास गुलाब नही है।
प्यास बुझाने की खातिर मैं, रक्तपान कैसे कर लूँगा ?
प्यासा है मन बात अलग है, पर इतना बेताब नही है।
चाहत है कुछ चेहरों को मैं पल भर की मुस्कान दे सकूँ,
जो औरों की नींद उड़ा दे ,ऐसा मेरा ख्वाब नही है ।
मैं जुल्मों की हद तक, जालिम ! तेरे सारे पाप लिखूँगा,
तू यह वहम छोड़ दे गाफिल! मेरे पास हिसाब नही है।
जबसे उसे मिली है गद्दी एक नशे में वो रहता है ,
कुर्सी तो कुर्सी है आखिर, वो तो कोई शराब नही है ।
———-© डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी