पंच ही परमेश्वर है !
पंजाब के सतलुज नदी के किनारे बसे 140 से 150 घरों के छोटे से गांव के सरपंच, सरदार उजागर सिंह ( बदला हुआ नाम ) कई रातों से ठीक तरह सो न सके थे। अपने हृदय में चल रहे तूफ़ान के कारण वह सो नहीं पा रहे है, कारण है अपने इकलौते बेटे की दूसरी जाती की लड़की, और वह भी नीच जाती की लड़की से शादी !
भोर हो गई थी। वह सैर के लिए निकल पड़े । नदी किनारे बैठ कर वो नदी में बह कभी ऊँची होती हुई तो कभी नीची होती हुई धारा को देख रहे है। उनके हृदय में इन धाराओं की तरह खलबली मची हुई है। वह देख रहे आकाश में चहकती चिडयां कैसे आज़ादी में मस्त उड़ रही है, और वह अपने हृदय में भावनाओं में क़ैद है।
कैसे होंगे इन से मुक्त ?
क्या वह इस अंतरजातीय शादी को स्वीकार कर ले?
हज़ारों सालो से चली आ रही इस प्रथा को कैसे स्वीकार करे ?
क्या वो कर पाएंगे ?
आज भी देश में कई गांव वाले हज़ारों साल पुराने जातिवाद की ज़ंजीरों में बंधे हुए है। कहाँ आदमी चाँद तक पहुंच गया है, और कहाँ वह सब ऊंच नीच, छूत अछूत को मानकर उन गरीब, अशिक्षित नीच जाती कहे जाने वाले लोगों को अपने से अलग कर के उन्हें अपने घर में आने नहीं देते, उनके साथ उठते बैठते नहीं, उनके साथ अपने बच्चो को खेलने नहीं देते और यहाँ तक की उनके घर भी उनके घर अलग सी बस्ती में थे । उनके लिए गुरुद्वारा भी अलग बना है और पीने के पानी के लिए अलग सा सरकारी नल ! वो आज भी उन ऊंची जाती वालों को अंग्रेज़ो के ज़माने से चली आ रही प्रथा के अनुसार झुककर सलाम करते है और उनके लिए रास्ता छोड़ देते है।
और उनके लाडले बेटे ने क्या किया ? अपने लाडले बेटे को उन्होंने अमृतसर के मेडिकल कॉलेज में पड़ने के लिए भेजा तो उसे पिछले वर्ष कोरोना महामारी की दूसरी लहर में कोरोना वायरस से संक्रमण हो गया था। वह आई सी यू में जिंदिगी और मौत से 15 दिन लड़ते रहा।
उनका दिल अपने इकलौते बेटे और वारिस को देखकर रो पड़ता। वाहे गुरु ने आखिर में उनकी अरदास सुन ली।
और अब वही बेटे ने एक नीच जाती की लड़की, जो एक नर्स थी और जिसने उसकी हॉस्पिटल में सेवा की थी से शादी कर ली और जब वो दोनों आशीर्वाद मांगने आये तो गांव के साथ उनके मन में भी बवाल मच गया।
आज उन्हें फैसला करना है। वह सरपंच है, क्या करे ?
पंचायत के सरपंच और पंच को सब पंच परमेश्वर मानते है।
उनकी गांव में बहुत इज़्ज़त है, कोई उनकी बात को नहीं टालेगा। सब उनके फैसले को स्वीकार कर लेंगे।
आज राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस है। भारत में पंचायती राज प्रणाली का राष्ट्रीय दिवस 24 अप्रैल को प्रतिवर्ष मनाया जाता है। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 24 अप्रैल 2010 को पहला राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस घोषित किया था।
उन्होंने अपने पंच साथियो को कहा, ” आज ज़माना बदल गया है, देश में उच्च पद पर कितने ही छोटी जाती के लोग आसीन है। जब कोई बीमार को खून देते है तो यह नहीं देखा जाता की खून देने वाले की जाती कौन सी है। भगवान् ने सब को एक सामान बनाया है। हम ने समाज को जातियों में बाँट दिया है। अब वक़्त आ गया है की हम जातिवाद को ख़त्म करे। आप पंच क्या मेरे से सहमत है ?”
सब पंच ने सहमति दे दी।
उन्होंने सबके से सामने पंचायत का फैसला सुनाया, ” पंचायत ने सर्व सहमति से यह फैसला किया है आज से, अभी से जाती का भेद ख़त्म कर दिया जायेगा। अब सब मिलकर एक साथ, एक सामान एक ही नल से पानी पियेंगे, एक ही गुरद्वारे और मंदिर में प्रार्थना करेंगे और आपस में मिलकर रहेंगे और शादी व्याह कर सकेंगे।”
गांव में सबके चेहरों पर ख़ुशी झलकने लगी।
अपने फैसले से पंचायत ने साबित कर दिया की पंच ही परमेश्वर है।
बेटे और बहु ने गांव के बड़ो से आशीर्वाद लिया और अपने घर में प्रवेश किया।
सरपंच जी मन ही मन वाहेगुरु जी का शुक्र किया और मन ही मन बोले, ‘ वाहे गुरु जी तेरी महिमा अपरम्पार है । ‘
– डॉक्टर अश्विनी कुमार मल्होत्रा