बालकहानी : प्रिया की नई सहेलियाँ
गर्मी का मौसम था। स्कूलों की छुट्टियाँ हो चुकी थी। प्रिया का भी स्कूल जाना बंद हो गया था। कक्षा तीसरी की प्रिया बहुत सुंदर थी। गोरा रंग। गोल-मटोल चेहरा। फुंडा-फुंडा गाल। सुंदर नुकीली सुआनाक। लम्बे-घने बाल। यानी दिखने में खूबसूरत तो थी ही; पढ़ाई-लिखाई में भी नंबर वन। पर अपने मम्मी-पापा की अकेली संतान होने के कारण थोड़ी जिद्दी हो गयी थी। मन करते तक घर में अकेली खेलती थी; आखिर कब तक खेलती ? बोर हो जाती थी बेचारी। आसपास उसकी उम्र की एक भी बच्ची नहीं थी। इस मुहल्ले में पंद्रह दिन हुए थे उन्हें शिफ्ट हुए। मम्मी घर पर रहती थी। पापा काम पर चले जाते थे। जहाँ वे लोग पहले रहते थे, उस काॅलोनी की प्रिया को बहुत याद आती थी।
एक दिन प्रिया टीवी देख रही थी। काॅर्टून खत्म होते ही वह कुछ बोलती, इससे पहले मम्मी बोली- तुम एक काम करो प्रियू। एक छोटी सी कटोरी में पानी रखकर तुलसी चौरा के पास रख दो।
क्यों मम्मी ? प्रिया सोफे से उठते हुए बोली।
तुम रखो तो पहले। मैं तुम्हारे लिए बढ़िया नाश्ता बना रही हूँ। गुलगुल भजिया बना रही हूँ। सौंफ डाल दूँगी; और इलाइची भी। फिर मस्त बढ़िया गुबुल-गुबुल खाना। किचन से मम्मी बोली।
अरे वाह ! तब तो मजा आएगा मम्मी। हाँ मम्मी ठीक है। कहते हुए प्रिया ने कटोरी भर पानी तुलसी चौरा के पास रखा। थोड़ी देर बाद देखती है कि कहीं से एक गौरैया आयी; और कटोरी के पास आकर बैठी। पहले वह इधर-उधर देखी। फिर कटोरी का पानी को पीने लगी। प्रिया को बहुत अच्छा लगा गौरैये को पानी पीते देख। उसने तुरंत अपनी मम्मी को आवाज लगायी; और दिखाया। दोनों बहुत खुश हुए। पानी पीने के बाद गौरैया फुर्र से उड़ गयी। मम्मी बोली- रोज ऐसे ही रखना प्रियू बिटिया। पशु-पक्षियों के लिए इस तरह भोजन-पानी की व्यवस्था करना बहुत जरूरी है। ऐसी भीषण गर्मी में पशु-पक्षी थर्रा जाते हैं। कभी-कभी भूख-प्यास के मारे उनकी जान चली जाती है। प्रिया मम्मी की बातें बड़े ध्यान से सुन रही थी।
दूसरे दिन प्रिया ने एक बड़ी कटोरी में पानी रखा। पंद्रह-बीस मिनट बाद चार-पाँच गौरैया आयीं। वे पानी पीने लगीं। प्रिया अपने कमरे की खिड़की से देख रही थी। तभी दो गौरैया खिड़की के छज्जे पर आकर बैठ गयी। प्रिया को झाँक-झाँक कर देखने लगी। प्रिया खुशी से चहक उठी। मम्मी को बताने चली गयी। आकर दोनों ने देखा; फिर दोनों चिड़िया उड़ गयी। मम्मी बोली- निराश नहीं होना मेरी रानी बिटिया। देखना वे कल फिर आएँगी। फिर प्रिया नहाने बाथरूम चली गयी।
अब तो रोज तीन-चार नहीं; दर्जन भर गौरैया आने लगी थीं। प्रिया उनके आने से पहले ही कनकी, चने के छिलके या रोटी के टुकड़े कटोरी के पास रख देती थी ;और पहले से ज्यादा मात्रा में डाल दिया करती थी। गौरैयों को भी रोज-रोज प्रिया के घर आना अच्छा लगता था। उनकी संख्या दिन-ब -दिन बढ़ती जा रही थी। जैसे ही गौरैया आतीं ,प्रिया उनके खाने के लिए कुछ न कुछ कटोरी के पास रख देती थी। पानी भी रख देती थी। सब के सब दाना चुगती; पानी पीती, और फुर्र हो जातीं। प्रिया आँगन में चार-पाँच जगहों पर अब मिट्टी के सकोरे में पानी रखती थी। अब तो गौरैये व प्रिया के बीच नजदीकी बढ़ने लगी थी। एकाध तो बिल्कुल पास ही आ जाती थी। कभी-कभी तो प्रिया के कंधे पर आकर बैठ जाती। गौरैये प्रिया की आवाज परखने लगी थी। तभी तो उसकी आवाज सुनकर कहीं पर भी रहती, आँगन पर आ जाती; और चींचीं-चींचीं करना शुरू कर देतीं। प्रिया भी उनकी आवाज सुनकर बाहर निकल आती। उन्हें छू-छू कर देखती ; और खुश होती।
दो-तीन महीने बीत गये। अब रोज सुबह प्रिया को उठाना गौरैयों का काम हो गया। सुबह प्रिया भी उन्हीं की आवाज से उठती थी। वे झुँड के झुँड प्रिया के कमरे में आती थीं ; और उसके बेड के पास खिड़की के ऊपर बैठ जातीं। घर भर वे प्रिया के पीछे-पीछे चलती थी। उन्हें किसी से कोई भय नहीं था। यह सब देख प्रिया के मम्मी-पापा कहते थे कि पशु-पक्षी भी प्रेम व आत्मीयता की भाषा अच्छी तरह समझते हैं, इसलिए कभी उन्हें भगाना या मारना नहीं चाहिए। जैसे ही प्रिया खिलौने लेकर बैठती, गौरैये भी उसके समीप आकर बैठ जातीं। कभी उसके कंधे पर,तो कभी पैर पर तो, कभी उसके खिलौनों के ऊपर। प्रिया के खेलते तक गौरैया चींचीं-चींचीं करते हुए इधर-उधर फुदकती रहतीं। अब तो प्रिया अपनी इन नई सहेलियों के साथ बहुत खुश थी।
— टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला”