लघुकथा

साहस की आरती (लघुकथा)

राजेश बाबू ने संध्या आरती के लिए थाल सजाया ही था कि बेटी नीति ने टोका, “पापा, आरती कीजिए लेकिन घंटी मत बजाइएगा”
“क्यों भई?” मुस्कुराकर राजेश बाबू ने पूछा, “तुमको तो घंटी की आवाज अच्छी लगती है”
“हाँ लेकिन अभी बाहर का माहौल सही नहीं न! दंगा किसी तरह शांत हुआ है लेकिन फिर भड़क सकता है, हमारे परिवार भी यहाँ बस एक तिहाई हैं”
“एक तिहाई हैं…तो क्या करें?” राजेश बाबू बोले, “हम डर जाएँ तो हम भी उन आततायियों जैसे ही न हो जाएँ! हमारी हिम्मत के बल पर ही तो हम, हम बने हुए हैं!”
“हाँ पापा, वो सब ठीक है लेकिन मेरे सारे सोशल मीडिया के फ्रेंड्स जो शहर के बाहर हैं, कह रहे थे कि हम आपलोगों की सुरक्षा के लिए प्रार्थना करेंगे! उनकी ऐसी बातें सुनकर डर लगने लगा है”
“बेटी, जब तुम्हारे उतने दोस्त हमारे लिए प्रार्थना कर रहे हैं तो फिर हमको डरने की क्या जरूरत?” कहते हुए राजेश बाबू के हाथ घंटी बजाने लगे और मुख आरती गाने लगा। (समाप्त)

*कुमार गौरव अजीतेन्दु

शिक्षा - स्नातक, कार्यक्षेत्र - स्वतंत्र लेखन, साहित्य लिखने-पढने में रुचि, एक एकल हाइकु संकलन "मुक्त उड़ान", चार संयुक्त कविता संकलन "पावनी, त्रिसुगंधि, काव्यशाला व काव्यसुगंध" तथा एक संयुक्त लघुकथा संकलन "सृजन सागर" प्रकाशित, इसके अलावा नियमित रूप से विभिन्न प्रिंट और अंतरजाल पत्र-पत्रिकाओंपर रचनाओं का प्रकाशन