मातृ मानसिक स्वास्थ्य में पारिवारिक प्यार और सामाजिक सहयोग अनिवार्या है
इंटर्नशिप के बाद मैंने एक साल हाउस जॉब लुधिआना के कपूर हॉस्पिटल में स्त्री रोग और प्रसूति विभाग में की। यु तो कपूर हॉस्पिटल में हर विभाग था पर शहर में कपूर हॉस्पिटल स्त्री रोग और प्रसूति के लिए मशहूर था। मेरी शादी 1980 में इंटर्नशिप के दौरान ही हो गई थी और कुछ महीनो बाद श्रीमती जी गर्भवती हो गई। घर में ख़ुशी की लहर दौड़ गई। माता जी ने श्रीमती जी का बहुत ख्याल रखा। जब प्रसूति का समय आया तब मैं कपूर हॉस्पिटल में प्रसूति कक्ष में ड्यूटी पर था। पिताजी और माताजी जी कार में श्रीमती जो को लाये तो मुझे खबर दी गई। मैंने उनके लिए एक कमरे का प्रबंध कर के अपनी सीनियर और प्रसूति विभाग की विशेषक डॉक्टर को बुलाया।
जांच करने के बाद उन्होंने कहा अभी समय है तो मैं अपनी ड्यूटी पर फिर से प्रसूति कक्ष में आ गया और सारी रात प्रसव में सहयोग करता रहा। उधर श्रीमती जी सारी रात प्रसव पीड़ा झेल रही थी और मैं इधर रात भर प्रसव कक्ष में व्यस्त रहा ! खैर वो समय भी आ गया जब श्रीमती जी को प्रसूति कक्ष में लाया गया। मैं प्रसूति कक्ष के साथ काज ड्यूटी रूम में बैठ गया और बेचैनी से अपने नाख़ून चबाने लगा। किसी भी महिला के लिए प्रसव एक कठिन और पीड़ादायक अनुभव होता है और उस महिला और परिवार के लिए उतना ही भाववाहक समय।
जब काफी समय हो गया तो मैंने एक नर्स से पुछा, ” सिस्टर, कितना समय और लगेगा ? श्रीमती जी ठीक है न ?”
सिस्टर नर्स ने चुटकी लेते हुए कहा, ” ओहो ! बड़ी फ़िक्र हो रही है पत्नी की डॉक्टर साहिब ? सब ठीक है। जाओ जाके हॉस्पिटल का राउंड लगा लो। ”
पर मैं वही बैठा रहा, बैचेन और बेबस। कुछ देर बाद वही नर्स ने आकर जब कहा, ” डॉक्टर साहिब, मुबारक हो, बेटी हुई है। ”
” श्रीमती जी और बेटी सब ठीक है न , सिस्टर ? ” मेरे स्वर में बैचनी कंपन सुन कर वो मुस्करा कर बोली , ” सब ठीक है। आप बस मुँह मीठा कराओ। ”
जब मैं माता जी को यह खुशखबरी देकर लौटा तो मुझे प्रसूति कक्ष में जाने दिया गया। श्रीमती जी की आँखें बंद दी, शायद प्रसव की थकावट से सो रही होगी। एक नर्स उनका ब्लड प्रेशर देख रही थी।
” कितना है ?” मैंने पुछा।
” डॉक्टर साहिब, अभी 160 /110 है, “उसने उत्तर दिया।
मैं घबरा सा गया, यह ब्लड प्रेशर हाई क्यों हो गया है? उस वक़्त मै एक पति की तरह, एक डॉक्टर की तरह नहीं सोच रहा था, यह जानते हुए भी की कई महिलाओं में प्रसव के बाद ब्लड प्रेशर हाई हो जाता है।
इसी तरह विश्व भर में बच्चे के जन्म के बाद कुछ महिलाओं को प्रसव के बाद पोस्ट पार्टम यानी प्रसव के बाद कुछ शारीरिक, मानसिक तथा मनोवैज्ञानिक लक्षण और बीमारी हो जाती है, जो कुछ ही समय बाद अपने आप या दवाई से ठीक हो जाती है।
संसार में बच्चे के जन्म के बाद एक मां का जीवन पूरी तरह बदल जाता है। बच्चे की देखभाल, दिन-रात जागना, उसका भरण-पोषण करना यह सब मां के जीवन का हिस्सा बन जाता है। अक्सर देखा जाता है कि बच्चे के जन्म के बाद मांएं अचानक चिड़चिड़ी हो जाती हैं, छोटी-छोटी बात पर खीझती हैं। कई बार इसका कारण होता है प्रसव के बाद के अवसाद या पोस्टपार्टम डिप्रेशन जो कई कारणों से होता है। एक अनुमान के अनुसार भारत में हर पांच में से एक महिला इस बीमारी यानी पोस्टपार्टम डिप्रेशन की शिकार होती है।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन के कई कारण है, जैसे प्रसव के पहले या उस दौरान मानसिक तनाव का होना, होर्मोनेस में बदलाव और शिशु को जन्म देने के बाद देखरेख में हो रही समस्याएं। मैंने कई बार देखा है की जब प्रसव के बाद नई नई बनी माँ को पता चलता है की उसे बेटी हुई है तो उसे धक्का लगता लगता है जिससे उसे मानसिक तनाव हो जाता है।
पारिवारिक प्यार, सामाजिक सहयोग और कभी कभी दवाई से उस माँ को मानसिक तनाव, अवसाद और एंग्जायटी से आराम मिलता है।
विश्व में 2 मई से 8 मई तक विश्व मातृ मानसिक स्वास्थ्य सप्ताह मनाया जाता है। पारिवारिक प्यार, सामाजिक सहयोग और कभी कभी दवाई से उस माँ को मानसिक तनाव, अवसाद और एंग्जायटी से आराम मिलता है, इसलिए यह अनिवार्य है की उन सभी माँ को प्रसव के दौरान और उसके बाद की मानसिक मुश्किलों में जागरूकता बढ़ाये और सहयोग दे ।
डॉक्टर अश्विनी कुमार मल्होत्रा