हे राम !
हे राम! ग्यान-भक्ति और नवशक्ति दीजिए
बदले में जो भी पास है सर्वस्व लीजिए
केवट पे तुमने की कृपा निज-धाम दे दिया
मझधार में है नाव मेरी पार कीजिए
शबरी की भक्ति देखकर गदगद् हुए थे आप
मैं दीन-हीन हूँ जरा मुझ पर पसीजिए
मां जानकी का अपहरण जिस दुष्ट ने किया
उसको भी तारा आपने मुझ पे भी रीझिए
‘हनुमान’ सी अनन्या लाता कहाँ से मैं
साधक हूँ दें सजा मगर ऐसे न खीजिए
‘लक्ष्मण-भरत’ को आपने इतना दिया है प्यार
थोङा सा उसका अंश मुझे ‘शान्त’ दीजिए
— देवकी नन्दन ‘शान्त’