कहानी

कर्मठ

पिछली कामवालियों के नागे से परेशान मैंने हालिया दिनों में ही इसे रखा था। हँसती-बतियाती, पचास पार की एक नेपाली महिला! घंटे भर ही सही, आकर जाती तो जीवन में सरसता छा जाती। तत्पश्चात वही सन्नाटा, अकेलापन..। दिलों-दिमाग पर अवसाद ने पैर पसारने शुरू कर दिए थे, लगता जीवित क्यों हूँ?

अगले दिन फिर आती और खट्टी-मीठी बातों से मन एक हद तक हल्का कर जाती। लगता मुझसे ज्यादा इसकी जिंदगी में सुकून है। सवेरे से शाम तक कितने ही घरों में बोलती बतियाती काम करती, थक हार कर घर लौटती होगी तो झट से नींद आ जाती होगी। घुटन की गुंजाइश ही नहीं…

काम करते महीना बीता होगा तो उसकी सदाबहार मुस्कान का राज पूछा। लगा कहेगी, “बाल-बच्चे पल गए। वक्त गुजारने के लिए कुछ घरों में काम कर लेती हूँ। घर पर बैठी-बैठी क्या करती, बऊ दी (भाभी)..।”

पूर्वानुमान अंशतः ठीक ही था। उसने बताया, “मायका नेपाल , ससुराल कोलकाता में है। तीनों बेटियों की शादी हो गई है, तीन नाती नतकोर हैं।”

मैंने कहा, “तब आप निश्चिंत हो गई हैं। कितने घरों में काम करती हैं?”

“दो घरों में रान्ना (खाना बनाना) करती हूँ और चार घरों में झाड़ू बर्तन का काम।”

“बाप रे! जिम्मेदारियाँ पूरी हो गई हैं, फिर इतनी मेहनत क्यों? थकान नहीं होती?”

“मैं अपने लिए इतनी मेहनत नहीं करती, बऊ दी! एक बेटा है, बहनों से बहुत छोटा है। जब तक किसी काबिल न बना लूँ, चैन कहाँ?”

मैंने आदर्शवाद झाड़ा, “बढ़ती उम्र में चौथे बच्चे की आवश्यकता थी क्या?”

“माँ-बाप ने छुटपन में ही उनकी फौज की नौकरी देख कर मेरा ब्याह करा दिया था। सास शायद इसी इंतजार में थी कि फौज की नौकरी देख ढंग की लड़की घर में आए और…। ब्याह के बाद से मेरे पति पर नौकरी छोड़ कर कोई अन्य काम-धंधा करने का दवाब बनाने लगी। कहा, ‘फौज की नौकरी में प्राणों का खतरा है ; वह इकलौता लड़का था। सास के ड्रामों से तंग आकर उसने वह नौकरी छोड़कर सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर ली और हमारी जिंदगी मुसीबतों की राह पर चल पड़ी…। एक के बाद एक तीन बेटियाँ हुई तो सास बिफर पड़ी, ‘वंश का नाश करके मानेगी..।’”

“ कहानी कुछ लंबी होती जा रही है, छोटी करके बताइए!”

“करीब तेरह वर्ष पूर्व ब्रेन स्ट्रोक आया और उसे आंशिक फालिज मार गया। उसे उस हाल में देख सास भी अधिक दिनों तक टिक न पाई। मैं,तीन बेटियाँ, छोटा सा बेटा और मजबूरियाँ..। एक-एक करके मेरे गहने बिके, फिर घर बिकने की नौबत आई..।

वे फौज में होते तो अनेकों सुविधा मिलती, शायद पेंशन भी। पर सिक्योरिटी गार्ड को कौन पूछता है? ब्रेन स्ट्रोक पड़ते ही नौकरी चली गई थी। जब तक कुछ पास में था, मालिश कराई, नसों को जिंदा करने के लिए झटके दिलवाए। पर हाथ तंग हो गए तो तीन मंजिला घर बेचकर, बेटियों की शादी को पैसे रखे तथा कुछ दिन घर चलाया। तब तक कुछ घरों में सफाई बर्तन का काम ढूँढ लिया था। जब काम पर निकलती तो एक पिता की देखभाल करती, दूसरी छोटे भाई की परछाईं बन मेरे साथ घर-घर डोलती,तीसरी घर संभालती..। यूँ ही वर्षों कटे!

 तीन साल पहले, बिस्तर पर पड़ा पति साथ छोड़ गया। तब तक बेटियाँ ससुराल में थीं,अब रहा तेरह वर्षीय बेटा। उसी के भरण-पोषण को इधर उधर भागती रहती हूँ, बऊ दी! कमरे का किराया, राशन पानी, बेटे की पढ़ाई और ट्यूशन, सवेरे सवेरे फुटबॉल खेलने जाता है कोच के पास, अच्छा खेलता है। बताइए, इतने घरों में काम न करूँ तो कैसे पूरा पड़े?”

बातों के साथ उसके तेजी से चलते हाथ काम निपटाते जा रहे थे। काम खत्म करके कहा, “आती हूँ बऊ दी!..”

जाते-जाते सबक दे गई कि जब अपनी परेशानियाँ बड़ी और पलायन का रास्ता आसान लगने लगे ,तब आसपास के लोगों से मेलजोल बढ़ाना, परिवार एवं पड़ोसियों, घर के कामगारों से बतियाना चाहिए, संभव है, विकराल परेशानियाँ भी अपने इर्द-गिर्द के लोगों की परेशानियों से छोटी लगने लगें…. इन दिनों सोशल मीडिया भी है..।

— नीना सिन्हा

नीना सिन्हा

जन्मतिथि : 29 अप्रैल जन्मस्थान : पटना, बिहार शिक्षा- पटना साइंस कॉलेज, पटना विश्वविद्यालय से जंतु विज्ञान में स्नातकोत्तर। साहित्य संबंधित-पिछले दो वर्षों से देश के समाचार पत्रों एवं प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लघुकथायें अनवरत प्रकाशित, जैसे वीणा, कथाबिंब, सोच-विचार पत्रिका, विश्व गाथा पत्रिका- गुजरात, पुरवाई-यूके , प्रणाम पर्यटन, साहित्यांजलि प्रभा- प्रयागराज, डिप्रेस्ड एक्सप्रेस-मथुरा, सुरभि सलोनी- मुंबई, अरण्य वाणी-पलामू,झारखंड, ,आलोक पर्व, सच की दस्तक, प्रखर गूँज साहित्य नामा, संगिनी- गुजरात, समयानुकूल-उत्तर प्रदेश, शबरी - तमिलनाडु, भाग्य दर्पण- लखीमपुर खीरी, मुस्कान पत्रिका- मुंबई, पंखुरी- उत्तराखंड, नव साहित्य त्रिवेणी- कोलकाता, हिंदी अब्राड, हम हिंदुस्तानी-यूएसए, मधुरिमा, रूपायन, साहित्यिक पुनर्नवा भोपाल, पंजाब केसरी, राजस्थान पत्रिका, डेली हिंदी मिलाप-हैदराबाद, हरिभूमि-रोहतक, दैनिक भास्कर-सतना, दैनिक जनवाणी- मेरठ, साहित्य सांदीपनि- उज्जैन ,इत्यादि। वर्तमान पता: श्री अशोक कुमार, ई-3/101, अक्षरा स्विस कोर्ट 105-106, नबलिया पारा रोड बारिशा, कोलकाता - 700008 पश्चिम बंगाल ई-मेल : maurya.swadeshi@gmail.com व्हाट्सएप नंबर : 6290273367