गीतिका
यह कैसा संयोग हुआ है, खुदा बचाये ।
नीच नीच का योग हुआ है,खुदा बचाये।
राजनीति की गद्दी बोली ,मेरी खातिर-
लाशों का उद्योग हुआ है,खुदा बचाये।
सबकी कमियाँ गिना रहा वो घूम घूमकर,
खुशफहमी का रोग हुआ है,खुदा बचाये।
अब तो मन को कुछ भी नही सुहाता मेरे,
जबसे तेरा वियोग हुआ है, खुदा बचाये ।
लंबी दूरी ,पथ दुर्गम, साथी मतवाले ,
भरी जवानी जोग हुआ है, खुदा बचाये ।
© डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी