ग़ज़ल
सभी फूलों के खिल जाने के दिन हैं
हवाओं अब तो इतराने के दिन हैं
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लिया था जो वो लौटाने के दिन हैं
कि सच्चाई को अपनाने के दिन हैं
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न जाने क्यूँ मेरा दिल कह रहा है
बिना ही बात मुस्काने के दिन हैं
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बुरे दिन भी गुजर जाएंगे प्यारे
नहीं अब और घबराने के दिन हैं
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दबे हैं राज़ तहखाने में कितने
सभी तालों को खुलवाने के दिन हैं
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समझदारी से हल होती है मुश्किल
नहीं बेकार चिल्लाने के दिन हैं
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नहीं होती है ऐसे जीत हासिल
सबक हर बार दोहराने के दिन हैं
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फ़िज़ाओं नें रमा फ़रमान भेजा
कि अब गुलशन को महकाने के दिन हैं
रमा प्रवीर वर्मा
नागपुर, महाराष्ट्र