दिलो के दरम्यां ये फ़ासला, हमें मंजूर नही।
अधूरा अधूरा सा सिलसिला, हमें मंजूर नही।
सो गए है ये चाँद +सितारे भी, मगर वो न आये,
शबे वस्ल का ये झूठा वादा, हमें मंजूर नही।
दो दिल मिल न पाए, मौहब्बत के साये में,
गर यही है रब दा फैसला, हमें मंजूर नही।
आये हो नजदीक तो ,हटा लो जुल्फें चेहरे से,
हुजुर ये चिलमन, ये परदा, हमें मंजूर नही।
इन्सां इन्सां के बीच, मजहब की हो दीवारें,
अहले जहाँ तेरा ये कायदा, हमें मंजूर नही।
— ओमप्रकाश बिन्जवे “राजसागर”