कविता
आहार पोषण की कमी से,गरीब कोई मर गया
गोदामों में सड़ता अनाज,देख!दिल मेरा टूट गया।
घर में बिलखते पत्नि बच्चे,बोतल खा रही चखना
यह कौन से संस्कार हैं, देख! दिल मेरा टूट गया।
कानून,भाषणों में बालश्रम,मुद्दा हमेशा छाया रहता
घर/कारखानों में बालश्रम,देख!दिल मेरा टूट गया।
रिश्तों से बना रहे दूरी,बाहर तलाशते खुशियां
अवसाद बनी है बीमारी,देख!दिल मेरा टूट गया।
कर्तव्य छूटे पीछे, स्वार्थपूर्ति घरों में घुस गया है
मनुज लोभमोह में घिरा है,देख! दिल मेरा टूट गया
जब अंत समय आया तो,याद आई सारी बातें
मनुष्य जीवन क्यों व्यर्थ ही गंवाया,देख! दिल मेरा टूट गया
— मनु वाशिष्ठ