नेशनल कैंसर सर्वाइवर्स डे:कैंसर के प्रति जंग में जीत!
तनु ( बदला हुआ नाम ) कितनी खुश थी। आज उसकी बेटी मालिनी की शादी है। मालिनी उसका हूबहू प्रतिबंद है, वैसी ही ख़ूबसूरत, नयन नक्श, कद काठी और कंचन सी काया। सब कहते की तनु और मालिनी बहने है।
शादी के शोरगुल और व्यवस्ता के बीच समय का पता ही नहीं चला। विदाई के बाद वो अपने पति सुमित के साथ अपने कमरे में आई तो थक कर लेटी तो जरूर पर उसे नींद नहीं गई। उसके सामने उसका अतीत घूमने लगा जब वो पहली बार इस घर में दुल्हन बन कर आई थी।
शरुआती झिझक और शर्म के बाद वह सुमित के प्यार में ऐसी डूबी कि उसे पता ही न चला कब दिन होता, कब रात। इन तीन वर्ष में सुमित ने उसे इतना प्यार दिया और इस कदर ध्यान रखा कि वो अपनी किस्मत पर इतराती। आईने में अपने आप को निहारती और फिर अपने ही हाथो से अपने चेहरे को ढक लेतीं। कही नज़र न लग जाये खुद को और फिर खुद ही हंस देती। सुमित उसे एक पल भी अपनी आँखों से ओझल होने देते, यहाँ तक कि कई बार दफ्तर से आधी छुटी लेकर आ जाते।
इसी तरह पंख लगाकर समय बीतता गया और एक दिन पता चला कि वो गर्भवती है। बस फिर क्या था, सुमित ने उसकी देख भाल के लिए एक नर्स रख दी। नौ महीने बाद उसने एक प्यारी सी एक बेटी को जन्म दिया। फूल सी बेटी, जिसका नाम उन्होंने मालिनी रखा। वो दोनों उसपर अपनी जान से ज्यादा प्यार करते।
समय का चक्र चलता रहा। मालिनी अब स्कूल जाने लगी। एक दिन अंकित ने कहा, ‘ तनु, अब मालिनी 4 साल कि हो गई है, तुम को नहीं लगता कि उसे एक बहन या भाई चाहिए? ‘
उस रात तनु विशेष से रूप से तैयार होने के लिए जैसे ही अपने आप को बाथरूम में लगे आईने में निहारने लगी उसे लगा कि बाये स्तन का आकार कुछ अलग है, निप्पल के पास का कुछ हिसा लाल है । उसने जैसे अपने हाथ से जब स्तन पर अपने हाथ फेरा, उसे बादाम के आकार की गाँठ महसूस हुई ।
यह क्या है? वह सोचने लगी, कही यह गाँठ कैंसर तो नहीं ?
नहीं नहीं ऐसे नहीं हो सकता, वह अपने आप को बार बार कहती रही, पर आशंकाओं से उसका मन घिरा रहा।
उसने अंकित को फ़ोन किया और घर जल्दी आने के लिए कहा।
” बस मैं थोड़ी देर में आता हूँ। क्या कोई ख़ास प्रोग्राम है ? ” उसने शरारत भरे अंदाज़ में पुछा।
जब तक अंकित नहीं आया तनु के मन में उथल पुथल रही।
अंकित आया और जब तनु ने उसकी आशंका को जाहिर किया तो अंकित ने बिना कोई देर किये अपने फॅमिली डॉक्टर को फ़ोन किया और अगले दिन की अपॉइंटमेंट ली।
डॉक्टर ने उसके स्तन का निरीक्षण किया और स्तन की बायोप्सी ( एक प्रकार का शारीरिक जांच ) करवाई। कुछ दिनों बाद जांच की रिपोर्ट आई।
वही हुआ जिसका डर था। बायोप्सी की रिपोर्ट पॉजिटिव थी, यानी उसे कैंसर है।
मन और मस्तिष्क उलझ कर रह गया। उसे ही कैंसर क्यों हुआ? अब क्या होगा ? क्या मेरा स्तन का ऑपरेशन होगा ? अगर मुझे कुछ हो गया तो अंकित और मालिनी का क्या होगा ?
डॉक्टर ने उसे बताया की ऑपरेशन के बाद, कीमोथेरेपी और रेडिएशन के बाद वो बिलकुल से ठीक हो जाये गी और लम्बे जीवन तक स्वस्थ रहकर सामान्य जीवन जी पाएंगी।
और फिर शुरू हुआ वो कष्टदायक, धका देने वाला, हराने वाली एक साल की वो अवधि जिसमे उसका ऑपरेशन के बाद 6 महीने कि कीमोथेरेपी और 3 महीने कि रेडिएशन में उसके शरीर का एक आकर्षक अंग काट दिया गया, उसको दस्त उलटी हुई, उसके शरीर के बाल झड़ गए, उसको भूख नहीं लगती और रात को नींद नहीं आती।
कभी मन में आता कि इस जीवन का क्या फायदा है, वह सब कुछ छोड़ कर कही भाग जाये या अपना जीवन समाप्त कर ले। दुसरे ही पल वह इन नाकारत्मक सोच को मन से निकाल देती है । वह इस नामुराद बीमारी के आगे हारे गी नहीं, वह कैंसर के विरुद्ध जंग जीत लेगी!
25 साल बीत गए है और वह एक कैंसर सर्वाइवर है।
इस जंग में वह अकेली नहीं है। उसके साथ हॉस्पिटल के डॉक्टर और समस्त स्टाफ है।
उसके साथ उसका हमसफ़र सुमित है।
-डॉक्टर अश्वनी कुमार मल्होत्रा