आनन्द की सुखद अनुभूति : आनन्द मंजरी
हिन्दी कविता साहित्य में पहेलियों और मुकरियों का चलन आदिकाल से रहा है। बौध्दिक विकास के साथ स्वस्थ मनोरंजन इनका उद्देश्य होता है। स्वयं को भारत का तोता कहने वाले अमीर खुसरो से लेकर भारतेन्दु हरिश्चंद्र तक अनेक कवियों ने मुकरियों का लेखन किया है। समकालीन परिदृश्य में श्री त्रिलोक सिंह ठकुरेला द्वारा विरचित आनंद मंजरी इसका ज्वलंत प्रमाण है। इस संग्रह में कुल 101 मुकरियों संकलित हैं। इनमें मानव जीवन के विषयों को कुशलता और सबलता के साथ प्रस्तुत किया गया है। वक्ता – श्रोता या वार्तालाप शैली बहुत सुन्दर बन गई। आपने कौतूहल उत्पन्न करने का सार्थक प्रयास किया है। एक उदाहरण द्रष्टव्य है –
मैं झूमूँ तो वह भी झूमे।
जब चाहे गालों को चूमें।
खुश होकर नाचूं दे ठुमका।
क्या सखि साजन? ना सखी झुमका।
कविवर ठकुरेला जी ने मँहगाई की तुलना सौतन सी की है तो डंडे की महिमा भी तीन मुकरियों में कहने का प्यास किया है। एक चित्र देख लीजिए –
लम्बा कद है, चिकनी काया।
उसने सब पर रौब जमाया।
पहलवान भी पड़ता ठंडा।
क्या सखि साजन? ना सखि, डंडा।
ठकुरेला जी व्यापक दृष्टि वाले लेखक हैं। उन्होंने जीवन से जुड़े विविध विषयों – ग्राम्य – शहरी, रिश्तों – वस्तुओं तथा प्राकृतिक उपादानों पर खूब कलम चलाई है –
होठों को छू मान बढ़ाये।
भरी सभा में प्यार जताये।
गुड़ गुड़ गुड़ गुड़ मारे तुक्का।
क्या सखि साजन? ना सखि, हुक्का।
ठकुरेला जी ने नेता, मच्छर, अलमारी, भौरा, तोता बिजली, भिखारी, गंगा, घोड़ा, चिमटा, बिस्तर, चटाई, खिड़की, बिजली और सोना जैसे अनेक विषयों पर मुकरियां लिखी हैं। हर जीजा की पहली चाहत उसकी साली होती है –
गोरी चिट्टी हो या काली।
नखरे करे कि भोली भाली।
मन में भरती वह खुशहाली।
क्या वह पत्नी ? ना रे साली ।
कवि ठकुरेला जी भाषा, भाव, शिल्प और छन्द के सफल हस्ताक्षर हैं। उन्होंने मुकरी जैसे सममात्रिक छन्द में सुन्दर भावनाओं को अभिव्यक्त किया है। कवि दायित्व का निर्वहन बखूबी किया है। एक प्रगतिशील समाज में बेटी का स्थान अत्यन्त आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है। कवि ने बेटियों की तुलना घर – आंगन की चिड़ियों से करते हुए लिखा है –
घर आंगन में चहक महककर।
मन में मोद भरे रह-रहकर।
प्यारी सुखद खुशी की पेटी।
क्या सखि चिड़िया? ना सखि बेटी ।
समीक्षा – नरेन्द्र सिंह नीहार
शिक्षाविद एवं साहित्यकार
नई दिल्ली ।
समीक्षा पुस्तक – आनंद मंजरी
लेखक. : त्रिलोक सिंह ठकुरेला
प्रकाशन वर्ष – 2019
मूल्य – 60 / – रुपये
प्रकाशन – राजस्थानी ग्रन्थागार
पृष्ठ संख्या – 48