गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

हसीं औ सुहानी मुलाकात की
बताऊँ तुम्हें बात इक रात की

तुम्हें देखकर जाने क्या-क्या हुआ
सुनो दास्तां आज ज़ज्बात की

नहीं अश्क हमको छिपाने पड़े
बड़ी मेहरबानी थी बरसात की

ये क़ातिल निग़ाहें, ये शोला बदन
तुम्हें क्या जरूरत है आलात की

जो मेरा, वही हाल तेरा है अब
करूँ बात क्या अपने आफ़ात की

— प्रवीण पारीक ‘अंशु’

प्रवीण पारीक 'अंशु'

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