ग़ज़ल
अन्दर क्या है बाहर क्या है ,
चिन्ता किसको सोचे कौन ?
भाग्य जिधर ले चला चल पड़े,
कर्मयोग को देखे कौन ?
एक आईना छोड़ सभी को ,
झूठ बोलते देखा है ;
झूठ का दर्पण हाथ में हो तो,
आईने को देखे कौन ?
एक स्वाति की बूँद की धुन में,
कब से चातक प्यासा है ;
प्यासा चातक सबने देखा उसकी,
प्यास को देखे कौन ?
परम्परायें कैसे टूटी इस प्रकरण ,
पर चर्चा है ;
जो टूटे रिश्तों को जोड़े उस ;
पहलू को देखे कौन ?
जब हमने पतवार तुम्हारे हाथ;
में दे ही दी है ‘ शान्त’ ;
गहरी नदिया, जर्जर नैय्या तेज ;
हवा को देखे कौन ?
— देवकीनन्दन’शान्त’