आकाश मे जाते बादल
जमीन पर गर्म हवाओं
धूल भरी आँधियों के संग
उड़ रहे
सूखे कंठ लिए
हर कोई निहार रहा
पेड़ मानों कह रहे हो
थोड़ा विश्राम करलो
हमारे गाँव में भी
सूखे कुएँ,सूखी नदियाँ से भी
अब तो गीत नही गाया जा रहा
धूप तेज होने से
बेचारे पत्थरों को
चढ़ रहा बुखार
मेहंदी बिन त्योहारों के
अचानक आ धमकी
पगथली औऱ हाथो में
कच्ची केरिया दे रही आहुति
तपन के इस लू के खेल में
सड़के हुई वीरान।
\– संजय वर्मा “दृष्टि”