बालकहानी : गणित की क्लास
शाॅर्ट रिसेस के बाद क्लास में बैठने की घंटी लगी। बच्चे अपनी-अपनी क्लास में बैठने लगे। कक्षा पाँचवी के छात्र त्रयम्बक ने गौरव के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा- “चल भाई जल्दी। नायक सरजी का गणित का पीरियड है। वे क्लास में जल्दी आ जाते हैं। चल दौड़ते हैं।”
थोड़ी देर बाद शिक्षक अशोक नायक जी कक्षा पाँचवी में आये। “गुड ऑफ्टर नून सर…!” कहते हुए बच्चे खड़े हुए।
“गुड ऑफ्टर नून बच्चों। सिट डाऊन।” शिक्षक नायक जी के कहने पर बच्चे बैठे। बच्चों की ओर नजर डालते हुए उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा- “अरे त्रिनाभ ! बहुत स्मार्ट लग रहे हो जी। वाह ! नई यूनीफॉर्म है क्या त्रिनाभ ?” सभी बच्चे त्रिनाभ को देखने लग गये। त्रिनाभ बोला- “जी सरजी, नई यूनीफॉर्म है। पहली बार पहन कर आया हूँ आज सर जी।” मुस्कुराते हुए त्रिनाभ से नायक जी बोले- “यहाँ पर आओ। अच्छा। अब बताओ त्रिनाभ अपनी इस नई युनीफाॅर्म की शर्ट के सम्बंध में। कुछ तो बता सकते हो इसके बारे में। शर्ट तुम्हें अच्छी जँच रही है त्रिनाभ। क्यों बच्चों…?”
“जी सर जी, त्रिनाभ बहुत इस्मार्ट लग रहा है आज।” बच्चों की मुस्कुराहट व हँसी मिश्रित आवाज गूँजी।
“चलिए, मैं ही पूछता हूँ तुम्हें तुम्हारी शर्ट के बारे में। ओके…?”
“जी सर जी। त्रिनाभ सकुचाते हुए मुस्कुराया।
“अभी गणित का पीरियड है। फिर तो गणितीय तरीके से पूछना चाहिए। है ना ? नायक जी टेबल पर चाक रखते हुए बोले- “तुम्हारी यह शर्ट जो चेक वाली है। चेक किस आकृति में है जी ?”
“वर्ग बने हुए हैं सरजी।” अपनी शर्ट पर नजर डालते हुए त्रिनाभ बोला।
“वैरी गुड। चलिए बच्चों, ताली बजाइए त्रिनाभ के लिए।” मुस्कुराते हुए नायकजी जी बोले। तुरंत ही एक स्वर में तालियाँ बजी। फिर प्रश्न हुआ- ” कितने रंग हैं तुम्हारी शर्ट में।”
“एक..दो..तीन… हैं सरजी। नीला, सफेद, काला।” त्रिनाभ बोला।
“अच्छा, बताओ बटन कितने लगे हैं ?” “पाँच सरजी।”
“ठीक से गिनो।”
“पाँच ही तो हैं सर जी।”
“और अच्छे से चेक कर लो भाई; कहीं छः तो नहीं है ? तुम गिनो तो जी विनोद। शर्ट में कितने बटन हैं ?”
“एक.. दो..तीन..चार..पाँच… छः…।.छः तो हैं सरजी। ठीक है।” विनोद बोला।
“मैं गिनता हूँ अब।” त्रिनाभ के पास नायक जी गये। सब बच्चे का ध्यान चला गया अब त्रिनाभ पर। सुनने लगे- “एक, दो, तीन, चार, पाँच और…और…यह छः।” नायक जी ने शर्ट के सामने वाली पट्टी के नीचे को पलट कर दिखाया। सचमुच में एक बटन और लगा हुआ था पट्टी के पीछे में। “क्यों जी…?” नायक जी हँसते-हँसते त्रिनाभ की पीठ पर हाथ फेरने लगे।
“हाँ सरजी। न तो त्रिनाभ का ध्यान गया, और न ही हम सब का शर्ट के पट्टी के पीछे की ओर।” सभी बच्चे हँसने लगे। हँसी, मुस्कान और ठिठोली से क्लास का माहौल खुशनुमा हो गया। फिर सभी बच्चे अपनी-अपनी जगह पर बैठे। नायक जी बोले- “क्यों बच्चों, मजा आ रहा है ना ? बच्चों, हर चीज के प्रति ध्यान देना बहुत जरूरी होता है गणित में। ऐसा ही है जी यह गणित। गणित का सवाल हल करते समय अंको का बहुत ध्यान रखना पड़ता है। एक अंक का छूट जाना या इधर उधर हो जाना सवाल को प्रभावित करता है। एक बात और है बच्चों कि गणित में सिर्फ पाठ्यपुस्तक से ही काम नहीं चलता। गणित हर जगह होता है। हमारे जीवन में भी गणित है। अब पूछो न… जीवन में गणित कहाँ और कैसे होता है ?”
“जीवन में कहाँ…कैसे… सर जी गणित ?” सामने बैठे दो चार बच्चों ने पूछ ही डाला।
“जीवन तीन अक्षरों से बना है; है ना ? और यह जो तीन है एक अंक है। तीन तो गणित में ही होता है ना ? तो है ना जीवन में गणित।” हँसते हुए नायक जी ने अपनी बात रखी। हर जगह गणित है, जैसे- दो आस्तीन, दो कालर, पाँच-छः बटन। बटन की आकृति गोल है, वृत्त की तरह। बटन में भी व्यास है, त्रिज्या है, एक केंद्र है। फिर तो बटन की परिधि है। क्षेत्रफल भी निकलेगा। सूत्र बनेगा। इसमें पाई होता। इसका मान बाईस बटा सात या तीन दशमलव एक चार आदि आदि।” सभी बच्चे “जी हाँ सरजी…बिल्कुल सही…” बच्चों का ध्यान नायक जी की ओर खींचा जा रहा था। फिर नायक जी ने चाक और डस्टर पकड़कर ब्लैक बोर्ड पास गए। बोले- “जैसे कि इस क्लास में कुल सैतीस बच्चे हैं। लड़के तेईस हैं। लड़कियाँ कितनी हैं, बताओ ?” थोड़ी देर बाद “चौदह… ” आवाज आई। “ओके…! यही तो गणित है।” फिर अपनी जेब से वे पेन निकालते हुए बोले- “अच्छा, कल जो होमवर्क दिया गया था क्लास में इबारती प्रश्न से संबंधित है, सभी बनाकर लाये हैं कि नहीं।”
“जी सरजी बना कर लाये हैं।” बच्चे एक साथ बोले।
“एक-एक करके लाते जाओ मेरे पास…” कहते हुए नायक जी चेयर पर बैठे। कापियाँ चेक करने लगे। दो-तीन बच्चों को छोड़कर सबने सवाल सही हल किया था। शर्ट की जेब पर पेन खोंचते हुए नायक जी चेयर से उठे। बोले- “बच्चों तुम सब ने अच्छा प्रयास किया है। राहुल, सतेंद्र, मनीषा से थोड़ी गलती हुई है सवाल हल करने में। कोई बात नहीं। हो जाती है गलतियाँ । गलतियों से ही सीखने को मिलती है। गणित के ऐसे सवाल को हल करते समय शब्दों को, वाक्यों को ध्यान से पढ़ना, और समझना बहुत जरूरी है। बच्चों, गणित में अभ्यास की बड़ी अहमियत होती है। अच्छा चलिए, अब आप सब में से, जिनका सवाल सही हल हुआ है। कौन स्वयं यहाँ आकर बोर्ड पर बना कर दिखायेगा ?” कुछ देर तक कक्षा में चुप्पी रही। बच्चे एक-दूसरे का मुँह देखने लगे, फिर चार-पाँच बच्चों ने हाथ उठाया। बोलते गये- “मैं… मैं….बनाऊँगा… मैं बनाऊँगी….।” नायक जी को बड़ी खुशी हुई। बोले- “बहुत अच्छा। चलिए, सवाल को ब्लैक बोर्ड पर लिख देता हूँ।”
“एक किसान 9750 रू. लेकर बाजार गया। 2500 रू. की उसने एक गाय खरीदी। 3765 रू. का एक बैल मोल लिया। 3000 रू. का कृषि यंत्र पर खर्च किया। अब बताइए, किसान के पास कितने रुपए बचे ?”
चाक और डस्टर पकड़कर ब्लैक बोर्ड की ओर इशारा करते हुए नायक जी बोले- “चलो आओ गीतांजली ! तुमने भी तो बनाया है ना ?”
“जी सर जी, मैं बनाऊँगी।” गीतांजली उठी। ब्लैक बोर्ड के पास गयी। चाक लिया ; और ब्लैक बोर्ड पर साइड में “हल…” लिखा। तभी नायक जी बोले- “गीतांजली ! ऐसे ही नहीं जी, बोलकर क्लास की ओर देखते हुए, क्लास को समझाते हुए बनाना है।” नायक जी चेयर पर बैठ गये। गीतांजली ने शुरू किया- “एक है किसान, जो 9750 रू.लेकर बाजार जाता है, फिर वह 2500 रू. की एक गाय खरीदता है।” बच्चे ध्यान से देखने और सुनने लगे। सबके सब चुप थे।। गीतांजली ने जारी रखा- “3765 का बैल लेता है। 3000 रू. का कृषि यंत्र भी खरीदता है। फिर सबसे पहले तो हम खरीदने वाले मूल्य अर्थात खर्च की गयी राशि को एक साथ जोड़ देंगे। इस तरह 2500+3765+3000 = 9265 हुआ। फिर कुल राशि 9750 रू, जिसे लेकर किसान बाजार गया है; उसमें कुल खर्च की गयी राशि- 9265 रू. को घटा देते हैं, इस प्रकार 9750 – 9265 = 485 आएगा। यह संख्या किसान के पास बची हुई राशि हुई। यह सवाल इसी तरह हल होगा सर जी। 485 रू ही सवाल का उत्तर होगा।” सभी बच्चों ने फिर एक बार जोरदार ताली बजाई। फिर नायक जी बोले- “बहुत अच्छा गीतांजली। बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इसी तरह ही हर बच्चे को बड़े ध्यान से; पूरे आत्मविश्वास से गणतीय सवालों को हल करना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर होमवर्क करते समय अपने पैरेंट्स का हेल्प लेना चाहिए।” नायक जी आगे और बता ही रहे थे कि पीरियड समाप्ति की बेल बजी। वे क्लास से निकल रहे थे, तभी बच्चे प्रसन्नचित्त होकर एक ही स्वर में बोले- “थैंक यू सर जी….।”
— टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला”