रिश्तों में तकरार की वजह बन रही सोशल मीडिया व मोबाइल
भारत की आजादी और संविधान निर्माण के बाद पहली दफा ऐसा हुआ कि पंचवर्षीय पंचायती राज व्यवस्था का चुनाव 7 वर्षों बाद होने जा रहा था; प्रत्याशी से लेकर मतदाता हर कोई एक अलग ही उल्लास में नजर आ रहा था ; आखिर इतने दिनों बाद मतदान करने और चुनाव जीतने का सौभाग्य जो प्राप्त हुआ था |
मै भी मां और स्नेहा (छोटी बहन) के साथ मतदान करने गई अत्यधिक जनसमूह होने के कारण मतदान में काफी विलंब हुआ जैसे तैसे हम तीनों घर पहुंचे !
घर के मुख्य गेट के सामने पहुंचते ही कलाई की तरफ देखा तो शाम के 5 बजने को थे मम्मी और स्नेहा अंदर चली गई मै वहीं सामने छज्जे पर कुर्सी निकालकर जैसे ही बैठने वाली थी कि एक मीठी सी मिमियाने कि आवाज आई; मैंने देखा तो सामने कि गौशाला से मेरी मुनिया (गाय की बछिया)मुझे देखकर मिमिया रही थी मानो मुझसे कह रही हो कि इतनी देर में घर आयी हो तो मेरे पास आओ बैठो और मुझसे बाते करो !
मैं मुनिया कि आवाज और भावना दोनों को अनदेखा करते हुए आभाषी दुनिया (फेसबुक) चलाने में व्यस्त हो गई; कितने लोगो ने मेरी पोस्ट को पसंद किया कितने लोगो ने पोस्ट पर टिप्पणी की ; मेरे फेसबुक के जो मित्र है कौन कहा घूमने गया है किसने कहा से पोस्ट डाली है यही सब देखने में व्यस्त थी ; और ये (फेसबुक) एक अभाषी दुनिया है इसका मुझे तनिक भान नहीं हुआ| कुछ समय उपरांत जब आभासी दुनिया (,जो मुझे वास्तविक लगती है) उससे बाहर आई मोबाइल में बैटरी न होने की वजह से उसको चार्ज पर लगाई तभी अचानक मेरी दृष्टि मुनिया पर गई जो मेरी तरफ देख तो रही थी पर मिमियाना छोड़ दी थी ; शायद वह उम्मीद खो बैठी थी कि मैं उस आभाषी दुनिया (फेसबुक) को छोड़कर उसके पास जाऊंगी
मै उसके पास गई प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा तो देखा कि ये क्या..? मुनिया तो मेरे हाथ चाटने की बजाय अपना चेहरा दूसरे तरफ फेर ली जब मै पुनः उसका प्रेम पाना चाही तो उसने भी दुबारा वहीं प्रक्रिया अपनाई मानो मुझसे कह रही हो कि अब क्यों आई हो मेरे पास जब बुलाया तब तो नहीं आई, सच कहूं तो मुझे बहुत दुख लगा मुझे लगा जैसे मै मुनिया के पास न जाकर कोई अक्षम्य अपराध की भागी बन गई हूं।
और उसी क्षण मुझे मेरे मोबाइल और आभाषी दुनिया( फेसबुक) पर बहुत क्रोध आया मुझे लगा कि इस आभाषी दुनिया ने इसी तरह न जाने हमारे कितने रिश्ते खा लिए है हम अपने घर के बड़े बुजुर्गो के पास बैठना भूल गए उनकी भावनाएं हमारे प्रति क्या रही है ये हम कभी समझ नहीं पाए क्योंकि हमारे अंतस में भावनाओं का स्थान आभाषी दुनिया ने ले रखा है! आज के समय में भी भावना उन्हीं के पास है जिनके पास मोबाइल और आभाषी दुनिया नहीं है !
जैसे मेरी मुनिया ही, उसकी भावनाएं भी निश्छल और निःस्वार्थ है, क्योंकि मेरी मुनिया के पास मोबाइल नहीं है !
— कृतिका द्विवेदी कृति